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________________ ३४२ खण्डहरोंका वैभव ० जिनकी कला में कोई ऐसे तत्त्व नहीं, जो इनको स्वतन्त्र स्थान दिला सकें । मध्य-प्रान्तकी रियासतोंमें भी कुछ पुरातत्त्व विशेष उपलब्ध हैं, यहाँपर ई पू० पाँचवीं शतीसे लगाकर आजतकका जो विशाल पुरातत्त्व फैला पड़ा है, उसमें से जितने का साक्षात्कार मैं कर सका, उसका संक्षिप्त परिचय, मेरी यात्रा में आये नगरानुसार यहाँ दिया जा रहा है । रोहणखेड़ - इस नगरका अस्तित्व राष्ट्रकूटोंके समय में था । स्थानीय पुरातन अवशेषों में शिव मन्दिर सर्वप्राचीन है । चपटीछत, चतुष्कोणषट्कोण स्तम्भ, विशाल गर्भद्वार, तोरणस्थ विभिन्न बेल-बूटोंके साथ हिन्दूधर्ममान्य तान्त्रिक देव-देवियोंका बाहुल्य, मन्दिरकी शोभाको और भी बढ़ा देते हैं । मन्दिरके निकटवर्ती चट्टानपर ५ पंक्तियोंका एक शिलालेख है, जिसके प्रत्येक श्लोकान्त भागमें 'ॐ नमः शिवाय' आता है । शिलालेख में राजवंश, संवत् आदि विलुप्त हो गये हैं। केवल 'तदन्वये भूपतिः 'कूट' इस पंक्तिसे प्रकट होता है कि यह मन्दिर संभवतः किसी राष्ट्रकूटनरेशका बनवाया हुआ है। दूसरा कारण यह भी है कि राष्ट्रकूटों द्वारा इलो पर्वतपर निर्मित कैलाश मन्दिर के शिखरका कुछ भाग और उसकी कोरणी इस मन्दिरसे मेल रखती हैं । मन्दिरके पाषाणोंको परस्पर अधिक दृढ़तासे जोड़नेके लिए बीच में ताम्रशलाकाएँ दी गई हैं । शिखरका भाग खंडित हैं । बरामदे में शेषशायी विष्णुकी प्रतिमा, बहुत ही सूक्ष्म एवं प्रभावोत्पादक कलापूर्ण ढंगसे, उत्कीर्णित है। दुर्गा, अंबिका आदि देवियों की मूर्तियाँ अरक्षितावस्था में विद्यमान हैं। इस मन्दिरके पीछे जमींदारी भी है । मराठी भाषा के आद्य गद्यकार श्रीपति, 'शिव महिम्नस्तोत्र' निर्माता पुष्पदंत यहाँ के निवासी थे । बालापुर - अकोला से १४ मीलपर, मन और म्हैस नामक नदी के तटपर अवस्थित है । इसके तटपर जयपुर नरेश सवाई जयसिंहजी की छत्री बनी हुई है | ( इनका देहान्त तो बुरहानपुर में हुआ था, फिर छत्री यहाँ कैसे बनी, यह एक प्रश्न है । ) यहाँके क़िलेमें बालादेवीका Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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