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घंटे पानीमें भिगा दिया जाय, आवश्यकता पड़नेपर इस प्रकार व्यवहारमें ला सकते हैं । पतला काग़ज़ लेखके ऊपर जमा लें, एक अोरसे पूर्व निर्मित पेन्सिल काग़ज़ पर आहिस्ता आहिस्ता घिसी जाय । लिपि स्थान श्वेत हो जायगा और कागज श्याम । समझिए लेखकी प्रतिलिपि आप प्राप्त कर चुके । फोटोग्राफकी अपेक्षा इस परसे ब्लॉक भी बहुत साफ बनता है।
१. मुद्रा-शास्त्र-पुरातन खण्डहरोंसे मुद्राएँ भी प्राप्त होती हैं। खण्डहरोंके निकट भरनेवाले साप्ताहिक बाजारोंमें कभी-कभी पुरातन मुद्राएँ उपलब्ध हो जाती है। व्यापारी उन्हें गलाकर रजत या स्वर्ण प्राप्त कर लेते हैं, । पर कलाकारको चाहिए कि मुद्राशास्त्रका व्यवस्थित अध्ययन करें एवं तदुपरि उत्कीर्णित लिपियोंमें राजा महाराजादिका अन्यान्य साधनों द्वारा अस्तित्वकाल प्रकट करें। मुद्राएँ इतिहासकी सर्वाधिक विश्वस्त सामग्री हैं और हमारी संस्कृतिका मौलिक विकास किसी-किसी मुद्रात्रोंमें बहुत स्पष्टतः परिलक्षित होता है । मुद्राशास्त्र केवल आंग्ल परम्पराकी देन नहीं है पर १४ वीं शतीमें इसके अध्ययनका सूत्रपात हो चुका था। ठक्कुर फेसनेर द्रव्यपरीक्षा नामक स्वतंत्र ग्रन्थ ही मुद्राशास्त्रपर वि० सं० १३७५ में प्रस्तुत किया था। प्राचीन साहित्यिक ग्रन्थोंमें आनेवाले मुद्राके उल्लेखोंको न भूलें।
'मैंने मध्यप्रान्तके कई नगरों में देखा है और सिवनीमें श्रीयुत धन्नीलालजी चुन्नीलालजी नाहटा और मालू खुशालचंदजीके पास ऐसी सिक्कोंकी पर्याप्त सामग्री अनायास ही एकत्र हो गई हैं। प्रसन्नताकी बात है कि वे स्वर्ण-लोभसे पुराने सिक्कोंको न गलाकर सुरक्षित रखते हैं। मुझे भी कुछ मुद्राएँ आपने महाक्षत्रप रुद्रदामन्की प्रदान की थीं, जो घनसौर, लखनादौन व छपारासे प्राप्त हुई थीं। आज भी चातुर्मासके बाद कभीकभी निकल पड़ती हैं।
२विशेषके लिए देखें "ठक्कुर फेरू और उनके ग्रन्थ' शीर्षक मेरा निबंध विशाल भारत जून-जुलाई १९४८।।
Aho ! Shrutgyanam