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________________ मध्यप्रदेशका बौद्ध-पुरातत्त्व . अभिनव गवेषियोंने निश्चित घोषणा की है कि आठवीं शताब्दीके महाकबि भवभूति पद्मपुर (जिला भंडारा, आमगाँव स्टेशनसे १ मील) के निवासी थे । जिस पद्मपुरका उल्लेख कविने वीरचरित्रके प्रथम अंकमें किया है वह उपर्युक्त पद्मपुर ही जान पड़ता है । पद्मपुरके निकट आज भी एक छोटीसी पहाड़ी है, जिसकी प्रसिद्धि भवभूतिकी टोरियाके नामसे है । कुछ अवशेषोंको रखकर उन्हें भवभूतिके रूपमें पूजते हैं। मालतीमाधवमें भवभूतिने अपने समयकी तान्त्रिक परम्पराका जो चित्र खींचा है, वह समसामयिक ऐतिहासिक पृष्ठ-भूमिसे फलित होता है। उन दिनों महाकोसल में बौद्ध व शैव तान्त्रिकोंका बाहुल्य था । आपसी प्रेम भी था। भवभूतिने उपर्युक्त नाटकमें बौद्धोंके तान्त्रिक समाजकी आन्तरिक दशाका विवरण दिया है । विशेषकर परिवाजिका कामन्दकीका चरित्र बौद्ध भिक्षुणीके सर्वथा प्रतिकूल है, जो बौद्धोंकी भग्न दशाका सूचक है। वह मालतीको उनकी सौभाग्य वृद्धि के लिए शिवपूजार्थ, चतुर्दशीके दिन पुष्प चुननेतकको भेजती है। इन्हींकी एक शिष्या सौदामिनी बौद्धधर्मका परित्याग कर किसी अधोरी अघोरघण्टकी चेली बन जाती है । आश्चर्य तो इस बातका है कि कामन्दकी का समर्थन सौदामिनीको प्राप्त है । अघोरघण्ट शैव परम्पराके क्रूर तान्त्रिक थे। ___ उपयुक्त घटनासे ज्ञात होता है कि ह्रासोन्मुखी बौद्ध तान्त्रिक परम्परा क्रमशः शैव परम्परामें घुल-मिल गई, कारण कि साधकोंकी साधनापद्धति भिन्न होती हुई भी, कुछ अंशोंमें समान थी। भवभूति तान्त्रिक १"वन्द्या त्वमेव जगतः स्पृहणीयसिद्धिः एवं विधैर्विलसितैरतिवोधिसत्त्वः । यस्याः पुरापरिचयप्रतिबद्धबीजमुद्भूतभूरिफलशालि विजृम्भितं ते॥" Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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