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________________ मध्यप्रदेशका बौद्ध- पुरातत्व ३०१ सिद्धनागार्जुनकी होनी चाहिए, क्योंकि प्राकृत भाषा में होनेसे हो, मैं इसे उनकी रचना नहीं मानता, पर कल्प में कई स्थानोंपर पादलिप्तसूरिका नाम बड़े सम्मान के साथ लिया गया है, जो इनके सब प्रकार से गुरु थे | प्रश्न रहा अपभ्रंश प्रतिलिपिका, इसका उत्तर भी बहुत सरल है । अत्यंत लोकप्रिय कृतियों में भाषाविषयक परिवर्तन होना स्वाभाविक बात है । नागार्जुन और सिद्धनागार्जुन भारतीय इतिहासकी दृष्टिसे विवेचनकी अपेक्षा रखते हैं । उभय- साम्य, समस्याको और भी जटिल बना देता है । सिद्धनागार्जुन के जीवन पटपर इन ग्रन्थोंसे प्रकाश पड़ता है, प्रभावकचरित्र, विविधतीर्थकल्प, प्रबन्धकोष, प्रबन्धचिन्तामणि, पुरातन प्रबन्धसंग्रह और पिण्डविशुद्धिकी टीकाएँ आदि । बौद्ध नागार्जुन, रामटेक में रहा करते थे। आज भी वहाँ एक ऐसी कन्दरा है, जिसका संबंध, नागार्जुन से बताया जाता है । " चीनी प्रवासी कुमारजीव नामक विद्वान्ने नागार्जुन के संस्कृत चरितका अनुवाद, चीनी भाषा में सन् ४०५ ई० में किया था ” ( रत्नपुर श्री विष्णुमहायज्ञ स्मारक ग्रन्थ पृ० ८१) | मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध अन्वेषक स्व० डाक्टर हीरालालजी ने नागार्जुनपर निम्न पंक्तियों में अपने विचार व्यक्त किये हैं "स्त्रीष्टीय तीसरी शताब्दी में अन्यत्र यह सिद्ध किया गया है कि विदर्भ देशके एक ब्राह्मणका लड़का रामटेककी पहाड़ी पर मौतकी प्रतीक्षा करनेको भेज दिया गया था, क्योंकि ज्योतिषियोंने उसके पिताको निश्चय करा दिया था कि वह अपनी आयुके सातवें बरस मर जायगा । यह बालक रामटेकके पहाड़की एक खोह में नौकरोंके साथ जा टिका । अकस्मात् वहाँ से खसर्पण महाबोधिसत्त्व निकले और उस बालककी "स्व० डॉ० हीरालाल - मध्यप्रदेशीय भौगोलिक नामार्थ- परिचय पृष्ठ १२-१३ । Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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