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________________ २८६ खण्डहरोंका वैभव थामें हस्ती बताये गये हैं, उस प्रकार इसमें भी रहे होंगे । निम्न भागमें दोनों ग्राहके बीच मकराकृति पायी जाती है, दायीं ओर चतुर्भुजो देवी एवं बायीं ओर यक्ष खड्ग लिये अवस्थित हैं । यह प्रतिमा किसी मंदिरकी मुख्य रही होगी। कारण कि निर्माण विधानकी दृष्टि से पर्याप्त वैविध्य है। यह प्रतिमा महू तहसील प्योहारीसे लाई गई है। पार्श्वदोंके हाथके चामर प्रायः लंबे हैं । ___संख्या १०३-ललाई लिये हुए पाषाणपर भगवान्की मूर्ति उत्थितासनमें उत्कीर्णित है, दोनों ओर पार्श्वद एवं निकटवर्ती खड्गासनस्थ मूर्तियाँ निम्न भागमें यक्ष-यक्षिणी अष्टप्रातिहार्य हैं। संख्या ५७-की प्रतिमा पार्श्वनाथ भगवान्की है। ___ व्यंकट सदनके अतिरिक्त गाँवमें कई मकानोंमें जिन-मूर्तियाँ लगी हुई हैं । घोघर नदीके किनारे धर्मशालाके समीप पीपल वृक्षके नीचे दो सुन्दर जिन-मूर्ति पड़ी हैं । लोगोंने इसे खैरमाई मान रखा है । 'बड़ी दइया' के जलस्रोतपर भी भगवान् नेमिनाथजीकी वरयात्राका सुन्दर प्रतीक पड़ा है । लोग इसपर वस्त्र धोते हैं । किलेके गुर्गी तोरण द्वारवाले मार्गपर भी जैन मंदिर के अत्यन्त कलापूर्ण स्तम्भ, शौचालय बने हैं। कुंभ कलशके साथ स्पष्टतः प्रतिमाका भी अंकन है।। इस ओर जैनोंके प्रति जनताका स्वाभाविक रोष भी है। रीवाँ के मुख्य जैन मन्दिर में भी विशालकाय जिन-प्रतिमा है । चित्रके लिए कोशिश करनेके बावजूद भी सफल न हो सका । रीवाँ के समीप यदि गवेषणाकी जाय तो और भी जैन अवशेष पर्याप्त मिल सकते हैं। (२) रामवन भारतप्रसिद्ध 'भरहूत' पहाड़की तराईमें उपर्युक्त आश्रम, प्रकृतिके मुक्त वायु-मंडलमें बना हुआ है । सतनासे रीवाँ जानेवाले मार्ग में दसवें मीलपर पड़ता है। पुरातन शिल्प-कलाके अनन्य प्रेमी बाबू शारदाप्रसादजीने ही इसे बसाया है । एक प्रकारसे यह आश्रम प्राचीन परम्पराका प्रतीक Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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