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________________ २५८ खण्डहरोंका वैभव स्पष्ट है। तदुपरि दोनों पार्श्वदोंके बीच अर्थात् देवीके मस्तकपर भगवान् नेमिनाथकी प्रतिमा अवस्थित है । वृक्षकी छाया में अम्बिका बैठी है । शारीरिक विन्यास बहुत ही सुन्दर और स्वाभाविक है । इस प्रकारकी यह एक ही प्रतिमा बिहारमें उपलब्ध हुई है । स्त्री मूर्ति विधान शास्त्रकी दृष्टि से इसका विशेष महत्त्व है। एलोराकी अम्बिका इसी प्रकारकी एक मानव-कदकी प्रतिमा एलौराकी गुफामें भी अंकित है। जिसका निर्माण-काल १० वीं शतीके आसपास है। आम्र-बृक्षकी सघन छाया है। राजगृहकी प्रतिमामें केवल आम्र वृक्षकी एक डाल अंकित करके ही कलाकारने संतोष कर लिया है, जब कि प्रस्तुत प्रतिमाके मस्तकपर तो सम्पूर्ण सघन अाम्र वृक्ष अंकित है । इस देवीकी मुख्य प्रतिमाके ठीक मस्तकपर छोटी-सी पद्मासनस्थ प्रतिमा है, जिसे भगवान् नेमिनाथकी कह सकते हैं । यों तो शिल्पीने इस मूर्ति के निर्माणमें प्रकृतिसे इतना सामंजस्य कर दिखाया है, जैसा अन्यत्र कम मिलेगा। विशेषता यह है कि आम्रवृक्षके दोनों ओर मयूर-मयूरियाँ अंकित हैं । आम्रके टिकोरे-से उसके फल है । वृक्षपर कहीं-कहीं कोयल भी दिखाई पड़ती है । तात्पर्य कि कलाकारने वसन्तागमनके भाव अंकित किये हैं। इसी प्रकारकी एक और प्रतिमा कलोल स्टेशनसे चार मील दूर शेरीसाके श्वेताम्बर जैन मन्दिर में विद्यमान है। उपर्युक्त वर्णित प्रतिमा सिंहासनपर विराजमान है। ऐसी ही प्रतिमा आबूमें भी पाई जाती है परन्तु यहाँ स्थानाभावसे उनका विस्तृत उल्लेख संभव नहीं है। प्राचीन तालपत्रीय जैन चित्रोंमें अम्बिकाके जो रूप मिलते हैं वे उपर्युक्त रूपोंसे कुछ भिन्न हैं । ऐसा पता चलता है कि ११ वी १३ वों शतीमें गुजरातमें अम्बिकाकी मान्यता व्यापक रूपमें थी। आरासुर और गिरनारमें तो अंबिकाके स्वतंत्र तीर्थ ही हैं। विमलशाके आबूवाले लेखमें इनकी स्तुति भी की गई है । (श्लो०६) Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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