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खण्डहरोंका वैभव
लिए सरकारका मुँह ताकना व्यर्थ है । समाज स्वयं अपना कला केन्द्र स्थापित कर सकती है । अरक्षित कलावशेषोंको एक स्थानपर सुरक्षित रखना क़ानूनी अपराध नहीं है, बल्कि जान-बूझकर इनको नष्ट होने देना अक्षम्य सांस्कृतिक अपराध है । 9 अप्रैल १६५० ]
Aho! Shrutgyanam