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मध्यप्रदेशका जैन- पुरातत्त्व
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ज़मीन लेकर बसाया था ।" " यहाँपर महादेव मन्दिरसे मुझे जिनमूर्तिका सुन्दर मस्तक प्राप्त हुआ था । नवग्रह युक्त जिन प्रतिमावाला एक शिलापट्टक मुझे यहींपर प्राप्त हुआ था, जिसका परिचय "महाकोसलका जैन पुरातत्त्व " " शीर्षक निबन्ध में आ गया है I
लखनादौन
सिवनी से जबलपुर जानेवाले मार्गपर उत्तरकी ओर ३८ मील है । इस ग्राम में प्रवेश करते ही दो-एक ऐसे मन्दिर बायीं ओर पड़ेंगे, जिनमें पुरातन अवशेष व मूर्तियाँ लगी हैं। उन्हींसे इसकी पुरातनता सिद्ध हो जाती है। आगे चलनेपर जैनमन्दिर हैं, इनमें से मुझे कुछ धातुमूर्ति-लेख प्राप्त हुए, जिनमें " गाडरवाडा" और "नरसिंहपुर' का उल्लेख है । लेखोंका १७०३-५-८ है । यहाँपर अन्तिम जैनमन्दिर के पास ही श्री बलदेवप्रसादजी कायस्थके घरमें अत्यन्त मनोहर जिन - प्रतिमा भीत में चिपकी है । इसपर गेरू पुता है । कहते हैं कि यहाँपर चातुर्मासके बाद कभीकभी खुदाई करनेपर मूर्तियाँ निकलती हैं । यहाँ के विक्रमसेनके खंडित लेखसे ज्ञात होता है कि उसने जैन तीर्थंकरका मन्दिर बनवाया था ।
नागरा
यह गाँव भंडारा जिले में, गोंदियासे ४ मील दूर है। पुरातत्त्वकी दृष्टिसे इसका महत्त्व है | यहाँपर जैनमन्दिरोंके ध्वंसावशेष व मूर्ति खंड पाये जाते हैं—जिनमें से कुछेकपर वि०सं० १२०३, १५४३ और शकाब्द १८०६ लेख पाये जाते हैं । सबसे बड़ा लेख १५ पंक्तियोंमें था, पर अज्ञानियों द्वारा शस्त्र तेज करनेसे मिट गया है । इन अवशेषोंको मैंने सन् १६४२में तो देखा था, पर १९५१ में गया तब गायब थे । पूछने पर ज्ञात 1 हुआ कि एक महन्तकी समाधिमें ये सब अवशेष काम आ गये ।
'जबलपुर - ज्योति, पृ० १७७ ।
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