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________________ जैन-पुरातत्त्व दिनेन उत्तरभाद्रपद [दा] नक्षत्रे इदं स्तम्भ समाप्तं इति ।।०॥ वाजुआ गगाकेन गोष्टिकभूतेन इदम् स्तम्भं घटितम इति ।।०॥ शक काल [लाब्द] सप्तशतानि चतुरशीत्य-अधिकानि ॥ ७८४[1] एपिग्राफिया इन्डिका ( वो ४, ५, ३१०) लेख वर्णित भोजदेव, महाराज 'नगावलोक' (श्राम ) का पौत्र था । नागावलोकने बप्पभट्टसूरिजीके उपदेशसे देवनिर्मित कहे जानेवाले मथुराके जैन-स्तूपका जीर्णोद्धार किया था । चित्तौड़का कीर्ति-स्तम्भ कीर्तिस्तम्भोंकी भी उपेक्षा नहीं की जा सकती। जैन-कीर्तिस्तम्भोंपर अद्यावधि समुचित प्रकाश नहीं डाला गया। इस कारण बहुत-से कीर्तिस्तम्भोंको लोगोंने मानस्तम्भ ही समझ रखा है। चित्तौड़का कीर्तिस्तम्भ १६वीं शताब्दीकी कलाका भव्य प्रतीक है। उसमें जैनमूर्तियोंका खुदाव आकर्षक बन पड़ा है। इसका शिल्प भास्कर्य प्रेक्षणीय है । दृष्टि पड़ते ही कलाकारकी दीर्घकालव्यापी साधनाका अनुभव होता है। इस स्तम्भके सूक्ष्मतम अलंकरणोंको शब्दके द्वारा व्यक्त करना तो सर्वथा असंभव ही है । इतना कहना उचित होगा कि सम्पूर्ण स्तम्भका एक भाग भी ऐसा नहीं, जिसपर सफलतापूर्वक सुललित अंकन न किया गया हो। सचमुचमें यह श्रमणसंस्कृतिका एक गौरव स्तम्भ है। , इसकी ऊँचाई ७५॥ फुट है । ३२ फुटका व्यास है। अभीतक लोग यह मानते आये हैं कि इसका निर्माण १२वीं शती या इसके उत्तरवर्ती काल में बघेरवाल वंशीय साह जीजाने करवाया था और कुमारपालने इसका जीर्णोद्धार कराया। एकमत ऐसा भी है कि यह वि० सं० ८६५में बना। प्राचीन जैनस्मारक। २जैन-सत्य-प्रकाश व० ६, पृ० १६६ । Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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