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हिन्दी भाषा टीका समेतः ।
मस्तक पर हो तो राज प्राप्ति, मुख पर हो ती मिष्ठान्न प्राप्ति, बांये हाथ कंठ जिमना हाथ और हृदय पर हो तो सुख, गुहास्थान पर हो तो रोग और पांव पर हो तो देश भ्रमण हो २६८ से २७० ||
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गुरुवास चक्र
गुरुचक्क सवइ कज्जे, जोइज्जइ गुरुरिक्वठवियाई ।
गिणियाई जम्म रिलिय, कहिय फल नारिनर अगे ॥ २७२ ॥ चउ सिरि चर कर दाहिणि, कंठे इग पण हिएहिं सड पाए । चउरो हि वाम करयं, नयणे तिय रिक्ख सगवीसं ॥ २७२ ॥ गुरु मत्थर हि लाभ: दाहिण कर कंठ हियय कलाणं । पाए विदेसगमणं, वामङ्कर असुह नयण सुह ॥ २७३ ॥
भावार्थ- गुरु चक्र सवं कार्य में देखना चाहिये, गुरुनक्षत्र से जातक के जन्म नक्षत्र पर्यन्त गिनना और नरनारीके अंग विभाग में- ४ मस्तक पर, ४ जिमना हाथ पर, १ कंठ पर, ५ हृदय पर, ६ पांव पर, ४ बांये हाथ पर, ३ नेत्र पर, इस मुजब अनुक्रम से स्थापित कर फल कहना- गुरु मस्तक पर हो तो लाभ, जिमना हाथ कंठ और हृदय पर हो तो कल्याण, पांव पर हो तो विदेश गमन, बांये हाथ पर हो तो अशुभ और नेत्र पर हो तो सुख हो
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शुक्रवास चक्र
भिगुचक सवह कज्जे, जोइज्जइ सुकरिक्वठवियाई । गिणियाई जम्मरिसिय, कहिय फल नारिनर अगे ॥ २७४ ॥ तिय मुहं पण सिरय, सड पाए चउ करे हि दक्खणय' । हियथे बीय ठवेय, चड कर वामें हि तिय गुज्म ।। २७५ ॥
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