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________________ हिन्दी भाषा-टीका समेतः। हो तो विदेश गमन हो और पांव पर हो तो अल्प आयुष हो । यह रविवास चक्र प्राचीन ज्योतिषीयों ने कहा है ॥ २५८ से २६१ ।। चन्द्रवास चक्रससिचक्क सवइ कर्ज, जोइजह चन्दरिक्खठवियाई। गिणियाई जम्म रिलिय, कहिय फल नारिनरअंगे ॥ २६२ ॥ सड धयणे सड पुढे, हत्थे सडयाइ गुज्झ तीयाई। तिय चरण तिय कंठे, सगवीसं रिक्त अणुक्कमसो ॥ २६३ ।। ससि वयणि हाणि कीरइ, धन लाहो पुहि हत्थि भयं निवय। गुज्मे हि निवमाणं, चरणं ठिय भङ्ग कठि सुहं ॥ २६४ ॥ भावार्थ-चन्द्रचक्र सर्व कार्य में देखना चाहिये, चन्द्रनक्षत्र से जातकके जन्म नक्षत्र पर्यन्त गिनना और नर नारीके अङ्गवि. मागमें- ६ मुख पर, ६ पृष्ठ पर. ६ हाथ पर, ३ गुह्य पर, ३ पांव पर और ३ कंठ पर, इस अनुक्रमसे स्थापिर कर फल कहनाचन्द्रमा मुख पर हो तो हानि करे, पृष्ठ पर हो तो धन लाभ करे, हाथ पर हो तो राज्य भय, गुह्य पर हो तो नृपमान, चरन पर हो तो परिभ्रमण और कंठ पर हो तो सुख हो । २६२ से २६४॥ १. भौमवास चक्र भूक्क सवइ कजे, जोइजइ भूमरिक्स उवियाई। गिणियाई जम्म रिसिया, कहिय फल नारिनर अंगे॥ २६५ ।। तिय वयणे तिय नयणे, तिय सिरं चड करे हि दो कंठे। हियय पर्ण तिय गुह्ये, पाए चसारि सगवीसं ॥ २६६ ॥ ..
SR No.034201
Book TitleJyotishsara Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1923
Total Pages98
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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