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ज्योतिषसारः 1
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यमदंष्ट्रायोग
अणुराहाए बीया, उत्तर तीया मघाइ पंचमिया
।
कर मूला सत्तमिया, अट्ठमि संयुत्त रोहिणिया ||२१६ ||
तेरस चित्ता साई, एए यमदाढजोग दुहदाई | उत्तम कच्छू न काइ, कीरइ नहु जई करइ माई ॥२१७||
भावार्थ-द्वितीया को अनुराधा, तृतीया को तीनों उत्तरा, पञ्चमी को मघा, सप्तमी को हस्त और मूल, अष्टमी १ को रोहिणी, त्रयोदशी को चित्रा और स्वाति हो तो यमदाढ्योग र होते हैं वह दुःखदायी हैं इसमें उत्तम कार्य कुछ भी करना नहीं, यदि करतो मरण होता है ।। २१६।२१७ ||
चरयोग-
सूरे हि पुठवसाढा, चंदा अद्दाइ भूवि साहाइ ।
बुद्धो रोहिणी सुक्क, मघा सनि मूला हवइ चरयोगा ॥२१८॥
भावार्थ - रविवार को पूर्वाषाढा, सोमवार को आर्द्रार्श, मंगल वार को विशाखा, बुधवार को रोहिणी, शुक्रवार को मघा और शनिवार को मूल नक्षत्र हो तो, चरयोग होते हैं I आरम्भ सिद्धि में "रविवार को उत्तराषाढा और गुरुवार को शतभिषा " इतना विशेष कहा है ॥२१८॥
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नोट- १नारचन्द्र टीप्पन में 'षष्ठी की रोहिणी' लिखा हैं २ उसको 'थमकतरी योग' भी कहते हैं ।