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________________ ज्योतिषसारः। मधे प्रहर (चार चार घडो) राहु रहता है ॥ १०४ ॥ अथ शुक्र फलभिगु पुव्व हि उग्गइ, दीहा बावन बि सयहि व अत्थं । पण पक्व ति दिहि ऊणा, पुव्वे दिण तिन्न बालायं ॥ १५॥ सोलस दिण अमासा, पच्छिम दीसेइ तेर दिण अत्थं । बुडोइ पनर दिवसं, पुट्टि वामोइ भिगु सुक्खं ॥ १०६॥ संमुह भिगु नहु गमणं, गुठ्विण नारि य बालसहिया यं । नव परिणिय नरवरे यं, सुक्खं हारेइ हेलाई ।। १०७ ॥ गुब्धिणी गम्भ सवई, बालय सहियाइ बाल मरिजाई । नव परणीय वंज्मा, नरवर हेलाई दुक्खाई ॥१०८ ॥ .. सड बोले हिं न दोसं, गामं इग पुरइ गेहि वास वसे। वीवाहे कंतारे, विदुर निवदेव जाई हिं॥१०६ ।। सवि सुक्ख वित्तमासे , जि? आणंद जलहि आसाढे। बहु सोय पोह माहे, भदव वइसाह पसुपीडं ॥ ११०॥ विग्गह कत्ती फग्गुणी, मिगसिरनि भंग पररजदुह आसो। अन समग्छ सावण अत्थं भिगुए रिसं अङ्गं ॥ १११ ॥ भिगु चक्खु वाम कांणय, दाहिण चपखुइ रेवया तिनं । कितिगरिकवं इग पय, अधो मिगु किरइ नहु दोसं ॥११२॥ भावार्थ-पूर्व दिशामें शुक्र २५२ दिन उदय रहता है, ७२ दिन मस्त रहता है और उदयसे तीन दिन बाल्य रहता है। परिश्रम दिशामें २५६ दिन उदय रहता है और १३ दिन अस्त रहता है;
SR No.034201
Book TitleJyotishsara Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1923
Total Pages98
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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