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॥ ऐ नमः श्रीजिनवराय በ
अथ श्री ज्योतिषसारः प्रारभ्यते ।
नत्वा,
श्रीमदर्हत्प्रभु केवलज्ञानभास्करम् । कुर्वे ज्योतिषसारख्य, भाषां बालावबोधिकाम् ॥ १ ॥
ग्रन्थकार अपने इष्टदेव को नमस्कार करते हैं ।
पण परमिट्ट णमेयं, समरिय सुहगुरु य सरस्साई सहियं | कहिथं जोइसहीरं, गाथा - छंदेण बंधेण ॥ १ ॥
भावार्थ - श्री पंच परमेष्ठी ( अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उ. पाध्याय और सर्व साध ु को नमस्कार करके और सरस्वती के साथ सद्गुरु का भी स्मरण करके गाथा बंध छंद से ज्योतिहीर ( ज्योतिषसार ) का मैं कहता हूँ ॥ १ ॥
द्वार गाथा कहते है
तिहि वार रिक्ख जोगं, होडाचक्कम्मि रासि दिणसुद्धी । वाहण हंसो वच्छो, सिवचक्क जोगिणी राहो ॥ २ ॥ भिगु कील परिघ पंचग, सूलं रविचारु थिवर सव्वंकं 1 रवि राज कुमार जाला, सुभ असुभ जोग भमियाय ॥ ३ ॥