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________________ ( ४६ ) इस पर तीर्थकर को सम्बोधित कर ग्रन्थकार का कहना है कि हे भगवन् ? बौद्ध का यह उपर्युक्त कथन भी ठीक नहीं है क्योंकि तुम्हारे नय की प्रतिबन्दी से तथा ध्रुव भाविता - अवश्यंभाबिता रूप हेतु के स्वरूप के बारे में उठने वाले सभी विकल्पों के दोषग्रस्त होने से उक्त कथन का सर्वथा निरास हो जाता है । नयप्रतिबन्दी का प्रकार यह है नाश में नश्यमान पदार्थ से अतिरिक्त कारण की निरपेक्षता मान कर यदि पदार्थ के दूसरे क्षण में उसके नाश की कल्पना की जायगी तो पदार्थ की स्थिति में भी उससे अतिरिक्त कारण की अपेक्षा न मानकर पदार्थ के अगले क्षणों में उसके स्थिर होने की कल्पना प्रसक्त होगी, फिर पदार्थ की क्षणिकता या स्थिरता का निर्णय कैसे हो सकता है ? जो जिसको ध्रुवभाबी होता है वह उसके बाद में होने वाले कारण की अपेक्षा नहीं करता, जैसे क्रियावान् पक्षी आदि का संयोगी वृक्ष आदि से होने वाला विभाग क्रिया के बाद में होने वाले कारण की अपेक्षा नहीं करता । जन्य वस्तु का नाश भी ध्रुवभावी है, फलतः वह भी नश्यमान वस्तु के बाद में होने बाले कारण की अपेक्षा नहीं करेगा । बौद्धों के इस न्याय- प्रयोग का खण्डन नैयायिक इस प्रकार करते हैं । ध्रुवभाविता रूप हेतु का निर्वचन अशक्य है, अत: उससे नाश को कारण - निरपेक्षता का साधन नहीं हो सकता । जैसे जन्यभाव का नाश ध्रुवभावी है इसका क्या अर्थ है ? ( १ ) नाश नश्यमान पदार्थ से अभिन्न है ? ( २ ) नाश अलीक है ? ( ३ ) नाश नश्यमान पदार्थ का कार्य है ? ( ४ ) नाश नश्यमान पदार्थ का व्यापक है ? ( ५ ) अथवा नाश नश्यमान पदार्थ का अभाव है ? इनमें यदि पहला (१) पक्ष माना जायगा तो नाश में नश्यमान पदार्थ के बाद होने वाले कारण की निरपेक्षता सिद्ध हो सकेगी क्योंकि नश्यमान पदार्थ में जब उसके बाद होने वाले कारण की अपेक्षा नहीं है तो उससे अभिन्न जो नाश है उसमें उस प्रकार के कारण की अपेक्षा कैसे होगी ? परन्तु यह पक्ष मान्य नहीं हो सकता, क्योंकि नाश निषेध - अभाव रूप है, यदि अभाव और प्रतियोगी में अभेद मान लिया जायगा तो अभाव और प्रतियोगी में परस्पर विरोध नहीं होगा, फलतः किसी वस्तु के विरुद्ध धर्म का ४ न्या० ख० Aho ! Shrutgyanam
SR No.034199
Book TitleJain Nyaya Khanda Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Badrinath Shukla
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1966
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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