SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ को ब्याप्य न मानने पर शिशपा-शीशम वृक्ष का व्यभिचारी हो जायगा, अर्थात् ऐसे शीशम की भी सम्भावना होगी जो वृक्ष न होगा। इस दोष की उपेक्षा या स्वीकृति नहीं की जा सकती, क्योंकि इसके रहने पर शिशपा-स्वभाव से वृक्ष-स्वभाव के सर्वसम्मत अनुमान का अर्थात् यह शीशम होने के नाते वृक्ष है इस अनुमान का भङ्ग हो जायगा। शिशपा यदि अपनी नैसगिक वृक्षस्वभावता का त्याग कर देगा तो उसे अपने निजी स्वभाव का भी त्याग करना होगा, अर्थात् शिशपा यदि वृक्ष न होगा तो शिशपा भी न होगा। इस तर्क से शिशपा में वृक्ष व्यभिचार का निरोध कर यदि उक्त अनुमान की रक्षा की जायगी तो उस प्रकार के तर्क से अङ्करकुर्वपत्व और शालित्व आदि बीजगत जातियों के भी परस्पर व्यभिचार को रोका जा सकेगा । जैसे अंकुरकुर्वद्रूप को शालिस्वभावता है और शालि को अंकुरकुर्वद्रूपस्वभावता है, ऐसी स्थिति में यदि अंकुरकुर्वद्रूप शालिस्वभावता का एवं शालि अंकुरकुर्वद्रूपस्वभावता का त्याग करेगा तो उन्हें अपने स्वरूप का भी त्याग कर देना पड़ेगा, इसलिए अंकुरकुर्वद्रूपत्व एवं शालित्व आदि बीजगत जातियोंके परस्पर व्यभिचरित होने की बात नहीं मानी जा सकती, फलतः बौद्ध के मनोरथानुरूप अंकुरकुर्वद्रूपत्व की सिद्धि नहीं हो सकती। ___मृन्मय और स्वर्णमय घटों में भिन्न दो घटत्व के समान अंकुरकारी शालि, यव आदि बीजोंमें परस्परविरोधी ऐसे अनेक अंकुरकुर्वदूपत्व मानने चाहिये जो अंकुरानुत्पादक बीजों में न रहें। पर यह बात भी स्वीकार करने योग्य नहीं है, क्योंकि इस व्यवस्था में शालिबीज में रहनेवाला अङ्करकुर्वदूपत्व शाल्यङ्कर का एवं यवबीज में रहने वाला अङ्करकुर्वद्रूपत्व यवाङ्कर का नियामक होगा, किन्तु अङ्करसामान्य का नियामक कोई न होगा, फलतः अन्य वस्तुओं में भी अङ्करत्व की प्रसक्ति होगी, इसलिये बीजसामान्य को अङ्कुरसामान्य का कारण मानना होगा, और उस दशा में शीघ्रकारिता एवं विलम्बकारिता का समर्थन या क्षेत्रस्थ बीज में अङ्करोत्पादकता एवं कुसूलस्थ बीज में अङ्करानुत्पादकता का समर्थन सहकारी कारणों के सन्निधान तथा असन्निधान द्वारा ही करना होगा, और तब कुर्वदूपत्व की कल्पना का कोई आधार न रह जायगा। बीजसामान्य को अङ्करसामान्य का कारण न मान कर कल्पित अङ्करकुर्वद्रूपत्व से युक्त बीजों को अङ्कर का कारण मानने में यह एक और दुर्वार दोष होगा कि बीज जैसे अंकूर के प्रति बीजत्व रूप से कारण नहीं है उसी प्रकार अन्य Aho! Shrutgyanam
SR No.034199
Book TitleJain Nyaya Khanda Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Badrinath Shukla
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1966
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy