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________________ ( ७ 9) है कारणता का समनियत अर्थात् कारणताशून्य स्थानों में न रह कर कारणता के सभी स्थानों में रहने वाला धर्म, जैसे अंकुरकारणता का अवच्छेदक बीजत्व एवं घटकारणता का अवच्छेदक दण्डत्व आदि । कुर्वद्रूपत्व का अर्थ है - कार्य को जन्म देने वाले कारणव्यक्तियों में ही रहने वाला एक विशेष धर्म । और तीसरे का अर्थ है सहकारी कारण का सान्निध्य न होने के नाते कार्य का जनन न करना । इस प्रकार सामर्थ्य के पांच भेद हैं, इनमें से एक भी विचार की कसौटी पर सत्य नहीं उतरता, यह बात आगे की कारिका की व्याख्या में स्पष्ट की जायगी । सामर्थ्यमत्र यदि नाम फलोपधानमापाद्यसाध्यविभिदाविरद्दस्तदानीम् । इष्टप्रसिद्धन्यनुभवोपगमस्वभाव व्याघात इच्छति परो यदि योग्यतां च ॥ प्रस्तुत तर्क और विपरीतानुमान में बौद्ध यदि सामर्थ्य शब्द से फलोपधायकता को लेना चाहता है तो आणद्य और आपादक तथा साध्य और साधन के परस्पर-भेद का लोप एवं यदि स्वरूप योग्यता को ग्रहण करना चाहता है तो इष्टप्रसिद्धि - सिद्धसाधन, अनुभव -साध्यबाधक - निश्चय, उपगम - प्रतिकूलमान्यता और स्वभाव अर्थात् स्वरूप के द्वारा उक्त तर्क ओर विपरीतानुमान का व्याघात प्राप्त होता है । पूर्व कारिका की व्याख्या में जिस तर्क का वर्णन किया गया है उसमें सामर्थ्य आपादक है और जिस विपरीतानुमान का उल्लेख किया गया है उसमें असामर्थ्य साध्य है । इस विचार में बौद्ध द्वारा प्रयुक्त सामर्थ्यं यदि फलोपधायकता-रूप माना जाय तो आपाद्य और आपादक के परस्पर भेद का विलोप होने से तर्क का एवं साध्य और हेतु के पारस्परिक भेद का लोप होने से विपरीतानुमान का व्याघात होगा क्योंकि तर्क के लिये आपादक को आपाद्य से भिन्न होना एवं अनुमान के लिये हेतु को साध्य से भिन्न होना आवश्यक है, और यदि सामर्थ्य स्वरूपयोग्यतारूप माना जाय तो उसके कथित चार प्रकारों में से पहले ( सहकारियोग्यता ) को लेने पर विपरीतानुमान में सिद्धसाधन होगा क्योंकि उसका साध्य - सहकारियोग्यता का अभाव - कुसूलस्थ बीज में सिद्ध है । दूसरे ( कारणतावच्छेदकधर्म ) को लेने पर अनुभव - पक्ष में साध्यबाध के प्रात्यक्षिक अनुभव - से विपरीतानुमान का व्याघात होगा क्योंकि साध्य — कारणता - वच्छेदकाभाव अर्थात् बीजत्वाभाव का अभाव बीजत्व - अङ्कुर को न पैदा करने वाले कुलस्थ बीज में प्रत्यक्ष देखा जाता है । Aho ! Shrutgyanam
SR No.034199
Book TitleJain Nyaya Khanda Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Badrinath Shukla
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1966
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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