SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १६६) क्योंकि आत्मा को बन्धन में डालने वाली दो वस्तुयें हैं-वासनासहित मिथ्याज्ञान और अनेक जन्मों में संचित कर्मपुज । उनमें पहले का नाश तो स्याद्वादसिद्ध आत्मस्वरूप के अवबोध से सम्पन्न हो जाता है अतः उससे उत्पन्न होने वाले बन्धन से तो आत्मा मुक्त हो जाता है, पर दूसरे कारण संचित कर्मपुज के अवशेष रहने से तन्मूलक बन्धन से आत्मा की मुक्ति नहीं हो पाती, अतः उस दूसरे कारण का नाश करने के लिये सच्चरित्र का परिपालन आवश्यक होता है, सच्चरित्र का सम्यक परिपालन जब पूर्णता को प्राप्त करता है तब संचित समस्त कर्मपुज का क्षय हो जाने से बन्धन का वह द्वार भी बन्द हो जाता है, इस प्रकार बन्धन के दोनों द्वार बन्द हो जाने पर आत्मा को पूर्ण मुक्ति का लाभ सम्पन्न होता है, अतः भगवान् जिनमहावीर ने ठीक ही कहा है कि जब सभी योगों-बन्धकारणों का निरोध हो जाता है तभी निर्बन्ध-बन्धनों से नितान्त मुक्ति की सिद्धि होती है । शानं न केवलमशेषमुदीर्य भोगं कर्मक्षयक्षममबोधृदशाप्रसङ्गात् । । बैजात्यमेव किल नाशकनाश्यतादौ तन्त्रं नयान्तरवशादनुपक्षयश्च ॥ ७ ॥ इस श्लोक में यह बात बताई गई है कि जैसे सच्चरित्रपालन के विना अकेले क्षायोपशमिक ज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती उसी प्रकार चरित्र के अभाव में अकेले केवल ज्ञान से भी मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती क्योंकि संचित कर्मकोशों का नाश उससे भी नहीं हो पाता । यदि यह कहा जाय कि जब साधक को केवल ज्ञान प्राप्त हो जाता है तब वासनासहित मिथ्या ज्ञान का नाश होने के साथ उसे समस्त संचित कर्मों के सहभोग को भी क्षमता प्राप्त हो जाती है, अतः केवलज्ञान से सम्पन्न साधक भोग द्वारा सम्पूर्ण संचित कर्मों का अवसान कर पूर्णरूपेण मुक्ति प्राप्त कर सकता है, इस लिये मोक्ष के सिद्धयर्थ केवलज्ञानी को सच्चरित्र का पालन अनावश्यक है, तो यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि संचित कर्मकोशों में ऐसे भी कर्म होते हैं जो अज्ञानबहुल जन्म द्वारा भोग्य होते हैं, फिर उन कर्मों का भोग करने के लिये केवलज्ञानी को उस प्रकार का भी जन्म ग्रहण करना होगा; और जब केवलज्ञानी को उस प्रकार के जन्म की प्राप्ति मानी जायगी तो उसमें अज्ञान का बाहुल्य भी मानना होगा, जो उस श्रेणी के विशिष्ट ज्ञानी के लिये कथमपि उचित नहीं कहा जा सकता। यदि यह कहा जाय कि अज्ञानबहुल जन्म से भोग्य कर्मों का नाश हो जाने के बाद ही केवल ज्ञान का उदय होता है, तो Aho ! Shrutgyanam
SR No.034199
Book TitleJain Nyaya Khanda Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Badrinath Shukla
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1966
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy