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________________ ( १२० ) योग्य नहीं है और स्थूल पदार्थ का अनुपलम्भ ही नहीं है, प्रत्युत “घट एक तथा स्थूल है" इस प्रकार स्थूल पदार्थ का उपलम्भ ही सर्वजनसिद्ध है, निष्कर्षतः अनुपलम्भ से भी बाह्य अर्थ का अभाव नहीं सिद्ध हो सकता। ___ यदि यह कहें कि घट आदि में एकत्व तथा स्थूलता का ज्ञान विकल्प अर्थात् विषयशून्य केवल प्रतीतिमात्र है. इसलिये इस विकल्पात्मक ज्ञान के बल से यह नहीं कहा जा सकता कि एकत्व तथा स्थूलत्व रूप से घट आदि का अनुपलम्भ नहीं है, फलतः अनुपलम्भ द्वारा घट आदि स्थूल पदार्थ के अभाव की सिद्धि अपरिहार्य है, तो यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि घट आदि में एकत्व तथा स्थूलता का जो ज्ञान होता है वह विकल्परूप नहीं माना जा सकता क्योंकि वह एक स्पष्ट अनुभव है और विकल्प सदा अस्पष्ट ही होता है। यदि यह कहा जाय कि उक्त ज्ञान की स्पष्टता स्वाभाविक नहीं किन्तु औपाधिक है अतः उसे विकल्परूप मानने में कोई आपत्ति नहीं है, तो यह भी ठीक नहीं है क्योंकि उक्त ज्ञान की स्पष्टता का सम्पादन करनेवाली उपाधि के दो ही रूप हो सकते हैं, एक तो उक्त ज्ञान का समानाकारक अनुभव और दूसरा उक्त ज्ञान का विभिन्नाकारक अनुभव । इनमें विभिन्नाकारक अनुभवरूप दूसरो उपाधि के द्वारा उक्त ज्ञान में स्पष्टता के व्यवहार को उपपत्ति नहीं की जा सकती क्योंकि किसी ज्ञान में उससे विभिन्नाकारक अनुभव के गुण वा दोष से गुणयुक्तता वा दोषयुक्तता का व्यवहार युक्तिसिद्ध तथा अनुभवसिद्ध नहीं है। हाँ, समानाकारक अनुभवरूप उपाधि के द्वारा उक्त ज्ञान की स्पष्टता की उपपत्ति सम्भावित हो सकती है, पर यह मानने पर एकत्व तथा स्थूलता के आश्रयभूत घट आदि की सिद्धि अनिवार्य हो जायगो क्योंकि उपाधिभूत अनुभव ही एक तथा स्थूल पदार्थ को सत्ता में प्रमाण हो जायगा। इस प्रसङ्ग में यह भी विचारणीय है कि ज्ञान के तत्तत् आकार का होना उसके विषय के तत्तत् आकार पर निर्भर है अतः एकाकार तथा स्थूलाकार ज्ञान की उपपत्ति के लिये उसके विषय को एक तथा स्थूल मानना पड़ेगा, ऐसी स्थिति में स्वभावतः यह प्रश्न उठेगा कि यदि घट आदि पदार्थ की सत्ता न मानी जायगी तो एकत्व और स्थूलता की प्रतीति किस धर्मी में होगी? परमाणुरूप धर्मी में तो उक्त प्रतीति सम्भव नहीं है क्योंकि स्थूलता और परमाणुरूपता में नैसर्गिक विरोध होने के कारण परमाणु को स्थूलता का धर्मी नहीं माना जा सकता। यदि यह कहें कि यह ठीक है कि एक परमाणु को स्थूलता का धर्मी नहीं माना जा सकता पर परमाणुसमुदाय को स्थूलता का धर्मी मानने में तो कोई आपत्ति नहीं है, तो यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि जिस परमाणु Aho! Shrutgyanam
SR No.034199
Book TitleJain Nyaya Khanda Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Badrinath Shukla
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1966
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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