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________________ (११६ ) कोई विरोध नहीं है, अतः सर्वशून्यतावाद के खड़े होने में कोई अड़चन नहीं है, तो यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि इस दूसरी संवृति को भी यदि सत्य न माना जायगा तो उसके बल से पहली संवृति को अस्तित्व न प्राप्त होगा और जब पहली संवृति को अस्तित्वलाभ न होगा तो उसके द्वारा हेतु आदि पदार्थों को भी अस्तित्व न प्राप्त होगा, फलतः सर्वशून्यतावाद में विचार का अवतरण असम्भव हो जायगा, और यदि इस आपत्ति के भय से दूसरी संवृति को सत्य माना जायगा तो उसी से सर्वशून्यता का बाध होगा। यदि यह कहा जाय कि अन्य पदार्थों के समान ही समस्त संवृतियों की भी सत्ता संवृतिमूलक ही है और संवृतियां अनन्त अर्थात् अनवस्थित हैं, तो यह कथन भी ठीक नहीं है, क्योंकि अन्य पदार्थ तथा संवृति के सम्बन्ध में जैसे प्रश्न उठते हैं वैसे ही प्रश्न संवृतिमूलक सत्ता के सम्बन्ध में भी उठते हैं और उनका कोई उचित समाधान सम्भव नहीं है। जैसे अन्य पदार्थ तथा संवृति की जो सांवृत सत्ता मानी जाती है, उसकी परिभाषा चाहे कुछ भी की जाय, पर वह यदि वास्तव होगी तो उसी से सर्वशून्यता का भङ्ग होगा और यदि वह अवास्तव होगी तो उस अवास्तव सांवृत सत्ता से पदार्थों को व्यवहारक्षमता नहीं प्राप्त होगी, फलतः व्यवहारक्षम हेतु आदि का अभाव होने के कारण सर्वशुन्यतापक्ष में विचार का अवतरण असम्भव हो जायगा। यदि यह कहा जाय कि यद्यपि यह ठीक है कि परमाणु के अस्तित्व का लोप करके बाह्य अर्थ का निराकरण नहीं किया जा सकता क्योंकि पूर्वोक्त जिन युक्तियों से परमाणु के खण्डन का प्रयास किया गया है वे युक्तियाँ यथोक्त रीति से ज्ञान के भी अस्तित्व को संकट में डाल देती हैं और ज्ञान के अस्तित्वलोप को स्वीकृति नहीं दी जा सकती; क्योंकि ज्ञान का भी अस्तित्व न मानने पर सर्वशन्यता की प्रसक्ति होगी और सर्वशन्यता स्वीकार करने पर हेतु, दृष्टान्त आदि का लोप हो जाने से विचार का अवतरण असम्भव हो जायगा तथापि अनुलम्भ के बल से वाह्य अर्थ का निराकरण करने में कोई बाधा नहीं है। यदि यह कहा जाय कि वाह्य अर्थ का निषेध दो ही प्रकार से सम्भव है एक तो परमाणू के निषेध से और दूसरा घट आदि स्थूल पदार्थ के निषेध से। और वह यों कि परमाणु का अभाव होने से घट आदि कार्य का अस्तित्व न हो सकेगा और घट आदि का अभाव होने पर कार्यरूप लिङ्ग का अस्तित्व न होने से अनुमान द्वारा कारणरूप से परमाणु का अस्तित्व न सिद्ध होगा। पर ये दोनों ही प्रकार सम्भव नहीं हैं क्योंकि अनुपलम्भ से परमाणु अथवा स्थूल पदार्थ के निषेध की सिद्धि नहीं हो सकती कारण कि परमाणु का अनुपलम्भ Aho ! Shrutgyanam
SR No.034199
Book TitleJain Nyaya Khanda Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Badrinath Shukla
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1966
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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