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________________ ( १२ ) अभेद तथा पारिणामिकभाव-रूप असाधारण धर्म की अपेक्षा उनमें परस्पर भेद है । उक्त प्रकार से उन दोनों में अभेद इस नियम के कारण माना जाता है। कि जिन पदार्थों का जो साधारण धर्म होता है उसकी दृष्टि से उनमें भेद नहीं होता । इस लिये जिस प्रकार द्रव्यत्व पृथिवी और जल का साधारण धर्म है अतः उसकी दृष्टि से वे दोनों परस्पर भिन्न द्रव्यत्वावच्छिन्न प्रतियोगिताक भेद का व्यवहार अर्थात् " जलपृथिव्यौ न द्रव्यम् - जल और पृथिवी द्रव्य नहीं हैं" ऐसा व्यवहार एवं जल में द्रव्य नहीं होते। उनमें त्वावच्छिन्नपृथिवीमात्रनिष्टप्रतियोगिताक भेद का व्यवहार अर्थात् "जलं द्रव्यत्वेन न पृथिवी - जल द्रव्यत्व की दृष्टि से पृथिवी से भिन्न है " ऐसा व्यवहार नहीं होता । उसी प्रकार सहोपलम्भविषयत्व ज्ञान और ज्ञेय का साधारण धर्म है अतः उसकी दृष्टि से उन दोनों में भी परस्परभेद नहीं है, फलतः ज्ञेय कथंचित् -- सहोपलम्भदृष्टया ज्ञान से अभिन्न है । इसी प्रकार जैसे पृथिवीत्व एवं जलत्व पृथिवी और जल के साधारण धर्म न होकर उनके असाधारण धर्मं हैं, इसी लिये जल में पृथिवीत्वावच्छिन्नप्रतियोगिताक भेद अर्थात् पृथिवीत्वरूप से पृथिवी का भेद और पृथिवी में जलत्वावच्छिन्नप्रतियोगिताक भेद अर्थात् जलत्व रूप से जल का भेद रहता है वैसे ही घटत्व रूप सादि पारिणामिक एवं द्रव्यत्व रूप अनादि पारिणामिक भाव घटज्ञान के धर्म न होकर घटरूप ज्ञेय के असाधारण धर्म हैं और मतिज्ञानत्व आदि सादि पारिणामिक भाव एवं ज्ञानत्व रूप अनादि पारिणामिक भाव घटरूप ज्ञेय के धर्म न होकर घटज्ञान के असाधारण धर्म हैं, इस लिये ज्ञेय में न रहनेवाले मतिज्ञानत्व, ज्ञानत्व आदि धर्मो का आश्रय होने से ज्ञान में ज्ञेय का भेद और ज्ञान में न रहनेवाले घटत्व, द्रव्यत्व आदि धर्मों का आश्रय होने से ज्ञेय में ज्ञान का भेद रहता है । फलतः ज्ञान में ज्ञेय का और ज्ञेय में ज्ञान का कथंचित् भेद भी रहता है । इस प्रकार उक्त रीति से ज्ञान और ज्ञेय में परस्पर-भेद और परस्परअभेद इन दो भङ्गों के सम्भव होने से बौद्ध मत में भी सप्तभङ्गी नय का अवतरण हो सकता है । और इसे यदि बौद्धमत में स्वीकार कर लिया जाय तो जैनमत के साथ इस मत का विरोध समाप्त हो जाता है । स्याद्वाद एव तत्र सर्वमतोपजीव्यो नान्योन्यशत्रुषु नयेषु नयान्तरस्य । निष्ठा बलं कृतधिया वचनापि न स्व. व्याघातक छलमुदीरयितुं च युक्तम् ॥ ३९ ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.034199
Book TitleJain Nyaya Khanda Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Badrinath Shukla
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1966
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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