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________________ ( ८३ ) ( ख ) एकपुरुषीय उपलम्भ का नियम भी ज्ञेय और ज्ञान की एकता का साधन नहीं कर सकता, क्योंकि ज्ञान में तो उक्त नियम सम्भव है पर ज्ञेय में उक्त नियम कथमपि नहीं हो सकता, जैसे किसी एक मनुष्य को एक घट का ज्ञान हुआ तो उस ज्ञान का उपलम्भ तो वही मनुष्य करेगा जिसे वह ज्ञान हुआ है पर उसके विषय का उपलम्भ तो अन्य मनुष्यों को भी होता ही है । यदि यह कहा जाय कि ज्ञान और ज्ञेय की एकता के मत में ज्ञानभेद से वस्तुभेद होता है, अतः एक मनुष्य को दिखाई देने वाला घट दूसरे मनुष्य को दिखाई देने वाले घट से भिन्न है, इसलिये एक पुरुष के ज्ञान और उनके आकार- विषय ये दोनों एक ही पुरुष को नियमेन उपलब्ध होते हैं यह उक्ति ठीक ही है और इसके बल से ज्ञेय और ज्ञान में एकता का साधन भी सम्भव ही है, तो इसका उत्तर यह होगा कि ज्ञानभेद से विषयभेद नहीं माना जा सकता, यतः ऐसा मानने पर दो मनुष्यों को एक घट का दर्शन न हो सकेगा । फलतः "जिस घट को तुमने देखा था उसे मैंने भी देख लिया" इस द्वारा देखा जाना, जो सर्वसम्मत है, उसका विरोध होगा । bo प्रकार एक घट का दो मनुष्यों ( ग ) एककालिक एकपुरुषीय उपलम्भ का नियम भी ज्ञान और ज्ञेय की एकता का साधन करने में असमर्थ ही है क्योंकि समूहालम्बन ज्ञान के विभिन्न दो आकारों में उक्त नियम होने पर भी एकता नहीं होती । कहने का भाव यह है कि विज्ञानवाद में साकार ज्ञान ही एक वस्तु है और वह स्वयंप्रकाश है । अतः जब किसी मनुष्य को समूहालम्बन ज्ञान होता है तो उसे उस ज्ञान और उसके विभिन्न आकारों का भी उपलम्भ होता ही है परन्तु उसके आकारों में अभेद नहीं होता । अतः एककालिक एकपुरुषीय उपलम्भ का नियम अभेद का व्यभिचारी हो जाता है । (घ) एककारणाधीन उपलम्भ तथा (ङ) एक उपलम्भ के नियम से भी लक्ष्य का साधन नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये दोनों नियम भी समूहालम्बन ज्ञान के परस्पर भिन्न आकारों में अभेद के व्यभिचारी हैं । ( २ ) ग्राह्यत्व - यह हेतु ज्ञेय और ज्ञान के अभेद का साधन करने में अप्रयोजक है अर्थात् वस्तु ज्ञान से अभिन्न होने पर ही ज्ञान का विषय बन सकती है, भिन्न होने पर नहीं, इस नियम को अस्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है । अत: ज्ञान से भिन्न भी वस्तु उसका विषय हो सकती है, इसलिये ग्राह्यत्व हेतु से ज्ञेय और ज्ञान के अभेद का साधन सम्भव नहीं हो सकता 1 यदि यह कहा जाय कि ज्ञान को अपने से भिन्न वस्तु का ग्राहक नहीं माना जा सकता क्योंकि ऐसा मानने पर प्रत्येक ज्ञान समस्त वस्तुओं का Aho! Shrutgyanam
SR No.034199
Book TitleJain Nyaya Khanda Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Badrinath Shukla
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1966
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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