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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. ।
यवक्षारा स्वर्जिका - सुवार्चिकाश्च ।
पाक्यः क्षारो यवक्षारो यावशुको यवाग्रजः । स्वर्जिकापि स्मृतः क्षारः कापोतः सुखवर्चका २५२॥
(५५)
पाक्य, चार, यवक्षार, यवाग्रज और यावशूक यह जवाखारके नाम । इसे हिन्दी में जौखार, अंग्रेजी में Carbouate of Potash कहते हैं । स्वर्जिका, सज्जीखार, कपोत और सुखवर्चका यह सज्जीखारके नाम हैं। इसे हिन्दीमें सजीखार फारसी में सञ्जार कलिया और अंगरेजी में Carbonate 0. Soda कहते हैं ।। २५२ ॥
कथितः स्वर्जिकाभेदो विशेषज्ञैः सुवर्चका । निदं तिशूलवाताम श्लेष्मश्वासगलामयान् ॥ २५३॥ पांड्वशग्रहणीगुल्मानाहप्लीहहृदामयान् । स्वर्जिका रूपगुणा तस्माद्विशेषाद्गुल्मशुल हृव २५४ सुवर्चका स्वर्जिकात्र बोद्धव्या गुणतो जनैः ।
सज्जीखारका भेद एक सुवचिका या लोटासज्जी नामसे प्रसिद्ध है इनमें जौखार-शूल, वातविकार, आमविकार, कफ, श्वास, गलेके रोग, पाण्डुरोग, बवासीर ग्रहणी, गुल्म अफारा, प्लीहा और हृदयके रोगोंको दूर करता है । सज्जीखार जौखारसे न्यूनगुणोंवाला है । किन्तु गुल्म और शूलको विशेषरूपसे दूर करता है। सुवचिका ( लोटासज्जी) भी सज्जीखारके समान ही गुणवाली है ।। २५३ ॥ २५४ ॥
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सौभाग्यम् ।
सौभाग्यं टंकणं क्षारं धातुद्रावकमुच्यते ॥ २५५ ॥ टंकणं वह्निकृद्र्क्षं कफहृद्वातपित्तकृत् ।
सौभाग्य, टंकण, क्षार और धातुद्रावक यह सुहागेके नाम हैं । इसे हिन्दीमें सुहागा, फारसीमें तीगार और अंग्रेजीमें Borax कहते हैं ।