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(४०) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
शृंगी। शृंगी कर्कटशृंगी च स्यात्कुलीरविषाणिका। अजशृंगी च वक्रा च कर्कटयख्या च कीर्तिता१८१ शृंगी कषाया तिक्तोष्णा कफवातक्षयज्वरान् । श्वासोवाततृकासहिकारुचिवमीहरेत् ॥ १८२ ॥ शृंगी, कर्कटशृंगी, कुलीर, विषाणिका, मजशृङ्गी, वक्रा तथा कर्कटा यह शृङ्गीके संस्कृत नाम हैं । हिन्दीमें इसे काकडसिंगी काते हैं ।
शृङ्गी-कषायरसपाली, तिक्त, गरम तथा कफ, वात, क्षय, ज्वर,श्वास, ऊह्मवात, तृष्णा, कास, हिचकी, अरुचि, वमन, इनको हरनेवाली है ॥ १८१ ॥ १८२ ॥
कट्फल । कटफलः सोमवल्कश्च कैटर्य्यः कुंभिकापि च । श्रीपर्णिका कुमुदिका भद्रा भद्रवतीति च ॥१८३॥ कट्फलस्तुवरस्तिक्तः कटुवातकफज्वरान् । हंति खासप्रमेहार्शः कासकंड्वामयारुचीः॥१८॥ कट्फल, सोमवल्क, कैटरर्य, कुम्भिका, श्रीपर्णिका, कुमुदिका, भद्रा, भद्रवती यह कट् फलके संस्कृत नाम हैं। हिन्दीमें इसे कायफल फारसीमें उदुलबर्क तया अंग्रेजीमें Myricasapida कहते हैं।
कायफल-कसला, तिक्त, मुटु तण वात, कफ, उदर, वास, प्रमेह,मर्श, खांसी, खुजली और अरुचि इन सबको दूर करता है । १८३ ॥ १८४ ॥
भागीं। भागी भृगुभवा पद्मा फंजी ब्राह्मणयष्टिका । ब्राह्मण्यंगारवल्ली च खरशाकश्वहंजिका ॥ १८५॥