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भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी. ।
गजकृष्णा कटुवीतश्लेष्मद्वह्निवर्धिनी ॥ ६८ ॥ उष्णा निरंत्यतीसारं श्वासकण्ठामयक्रिमीन् ।
चविका फलको ही विद्वान पुरुष गजपिप्पली कहते हैं । कपिवल्ली कोलबली, श्रेयसी तथा वशिर यह संस्कृत में गजपिप्पली के पर्यावाचक शब्द हैं | हिन्दी में इसको गजपीपल, अंग्रेजी में Scendapsus Officinalis कहते हैं । गजपीपल- कटु, वात और कफको हरनेवाली, अग्रिको बढानेवाली, गरम तथा अतिसार, श्वास, कण्ठके रोग तथा कृमियोंको नष्ट करती है ॥ ६७ ॥ ६८ ॥
चित्रकः ।
चित्रकोऽनलनामा च पाठी व्यालस्तथोषणः ॥ ६९ ॥ चित्रकः कटुकः पाके वह्निकृत्पाचनो लघुः । रूक्षोष्णो ग्रहणीकुष्ठशोथार्शः कृमिकासनुत् ॥ ७० ॥ वातश्लेष्महरो ग्राही वातार्शःश्लेष्म पित्तहृत् ।
वित्रक, अनलनामा ( अर्थात अग्नि के जितने नाम हैं वह सब चित्रकके भी हैं ) पाठी, व्याळ और ऊषण यह चित्रकके नाम हैं । इसको हिन्दी में चीता और चित्रक, फारसीमें वेख बरन्दा और अङ्गरेजी में Gingerroot कहते हैं। चीता पाकमें कटु, अग्निकों दीपन करनेवाला, पाचन करने बाला, रूखा और ग्राही है। चित्रक -ग्रहणी, कुष्ठ, सूजन, बवासीर, कृमिरोग ओर कासको नष्ट करनेवाला तथा वात और कफको नष्ट करनेवाला है ।। ६९ ।। ७० ।।
पंचकोलम् |
पिप्पलीपिप्पलीमूलं चव्य चित्रकनागरैः ॥ ७१ ॥ पंचभिः कोलमात्रं यत्पंचकोलं तदुच्यते ।