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(४२६) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
अथ सामान्यपरिभाषा। न भुक्का न रदैश्छित्वा न निशायां न वा बहून् । न जलान्तरितानाद्भः सक्तू द्यान्न केवलान् १९५॥ पृथक्पानं पुननिमामिषं पयसा निशि । दंतच्छेदनमुष्णं च सप्त सक्तुषु वर्जयेत् ॥ १५६॥ सत्तू भोजन करनेके अनन्तर न खाय, दांतो से कुचलकर न खावे, रात्रिमें न खाय, अधेि न खाय, दो बार पानी डालकर न खाय, मौर केवल सातू न खाए । अलग पीग, एकबार जिसने खाये हो उसको दूसरी बार न देना, मांस के साथ और दूधके साथ, रात्रिमें, दांतोंसे कुचल कर अरगरम करके इस प्रकार सत्तू नहीं खाना चाहिये, ऐसे वर्जित हैं ॥ १५५ ॥ १५६ ॥
अथ धानाः ( बहुरी)। यवास्तु निस्तुषा भृष्टाः स्मृता धाना इति स्त्रियाम् । धानाः स्युदुजरा रूक्षास्तृपदा गुरवश्च ताः। तथा मेहकाच्छर्दिनाशिन्यः संप्रकीर्तिताः ॥१५७॥ भूतीरहित योंको भुनवा लेवे, उसको धाना (बहुरी) कहते हैं। बहुरी-बुर्जरी (कठिनताले पचे), भारी रूक्ष, तमा नगाने वाली और प्रमेह, कफ तथा वमननाशक है ॥ १५७ ॥
____ अथ लाजाः (खील )। . येषां स्युस्तण्डुलास्तानि धान्यानि सतुषाणि च । वृष्टानि स्फुटितान्याहुबजाइति मनीषिणः।।१५८॥ लाजाः स्युर्मधुराः शीता लघवो दीपनाश्च ते । स्वल्पमूत्रमला रूक्षा बल्याः पित्तकफच्छिदः । छzतीसारदाहास्रमेहमेदस्तृषापहाः ॥ १५९ ॥ जिसमें चावन निकलते हैं उन छिलके सहित धात्योंको भाड़में भुनाले