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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी । (४२१) होगया है और जिनका शरीर मार्ग चलनेसे शिथिल हो गया है उन पुरुषों के शरीरोको तरकाल पुष्टि करती है। यह रसाला-(श्रीखण्ड) बीर्यवर्द्धक, बलदायक, रुचिकारक, वात तथा पित्तनाशक, अग्रिको दीपन करनेवाली, पुष्टिकारक, स्निग्ध, मधुर, शीतल, दस्तावर और रक्तपित्त वृषा, दाह तथा प्रतिक्षाय (जुखाम ) नाशक है॥ १२९-१३२ ॥
___ अथ शकरादकम् (सरबत)। जलेन शीतलेनैव घोलिताशुभ्रशर्करा । एलालबङ्गकर्पूरमरिचैश्व समन्विता ॥ १३३ ॥ शर्करोदकनाम्ना तत्प्रसिद्ध विदुषां मुखैः । शर्करोदकमाख्यातं शुक्रलं शिशिरं सरम् ॥१३४॥ बल्यं रुच्यं लघु स्वादु वातपित्तप्रणाशनम् । मूर्छा छर्दितृषादाहज्वरशान्तिकरं परम् ॥१३॥ शीतल जलमें सफेद खांड घोलकर उसमें इलायची, लोंग, कपूर तथा मिरच डाल देवे उसको विद्वान् शर्कगेदक (सरवत ) कहते हैं।
सरबत-वीर्यवर्धक, शीतल, दस्तावर, बलदायक, रुचिकारी, स्वादिष्ट हमका और वात, पिन, मूच्छी, वमन, तृषा, दाह तथा ज्वरको शांत करता ॥ १३३-१३५ ॥
अथ प्रपानकानि (सरबत)।
तत्र आम्रफलप्रपानकम् । आम्रमामं जले स्विन्नं मर्दितं दृढपाणिना। सिताशीतांबुसंयुक्तं कर्पूरमरिचान्वितम् ॥ १३६ ॥ प्रपानकमिदं श्रेष्ठं भीमसेनेननिर्मितम् । सद्यो रुचिकर बल्यं शीघ्रमिन्द्रियतर्पणम् ॥१३॥ कच्ची प्रमियोंको जलमें मौटाकर दृढताले मल लेवे, पश्चात सफेद चूरा, शीतल जन, कपूर और मिरच डाले इसको प्रपानक (प्रामका
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