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भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी. ।
तलित मां दरक, हलका, बहन निम्न रुचिकारी, शरीर को करनेवाला बौर बल, बुद्धि, अग्नि, मांस, धोज तथा धीर्यवर्द्धक
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अथ शूल्यालम ( कवाच ) ।
कालखण्डादिमांसानि ग्रथितानि शलाकया । घृतं सलवणं दत्त्वा निधूमे दइने पचेत् ॥ ८९ ॥ तत्तु शुल्यमिदं प्रोकंपाक कर्म विवक्षः । शूल्यं पलं सुचातुल्यं रुच्यं वह्निक लघु । कफहरं बल् किश्चित्तकरं हि तत् ॥ ९० ॥ कलेजे के मांसको कुचलकर थी और नन मिनाकर लोहे की सलाईमें लपेटकर धुएँरहित अग्निपर पकावे. ककर्म में कुशन पुरुष इमको शुरुव मांस ( कवाब ) कहते हैं । यह मांत-अमृतुल्य, रुचिकारी, अग्निको दीपन करनेवाला, डल का, करु तथा वातनाशक, बजदापक और किंचित पित्तकारक है ॥ ८९ ॥ ९० ॥
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अथ मांसश्रृंगाटकम (मांका लिंग. डा ) ।
शुद्धममं तनूकृत्य कर्तित स्वेदितं जले | लवंग हिंगुलवणमरिचकयुतम् ॥ ९१ ॥ एलाजीरवान्याक निम्बूरस समन्वितम् । घृते सुगन्धे तद्भृष्टं मांसशृंगाटकं रुव्यं बृंहणं बलकृद् गुरु । वातपित्तहरं वृष्यं कफघ्नं वीर्यवर्धनम् ॥ ९३ ॥
शृंगाटकं स्मृतम् ॥ ९२ ॥
शुद्ध मांसके छोटे २ टुकडे करके पानी में कावे पश्चात उसने लौंग, हींग, जीरा, नॉन, मिश्च, अदरक, हलायची, जीरा, धनियाँ तथा नींबू का इस डालकर घीमें भूनले, उसको मगाटक कहते हैं । मांसशृंगाटक