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________________ (३८६) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । स्थापक, पुष्टिदायक और शरीरके स्वभाव से मिलमा हुआ है इसने इसको इसको ग्रहण करे और वासो माल स्याग दे ॥ ८८ ॥ स्वयंमृतस्य मांसम् । स्वयंमृतस्य चाबल्यमतिसारकरं गुरु ॥ ८९॥ - स्वयं मरे हुए जीपका मांस-बलकी हानिकारक, प्रतिमारको करने. चामा पौरभारी है । ८९॥ ___ वृद्धगलमांसम् । वृद्धानां दोषलंमाम बालानां बलदं लघु । सर्पदष्टभ्य मांसश्च शुष्कमा त्रिदोषकृत् । ग्यालदश्चदुष्टश्च शुष्कं शूलकरं परम् ॥९॥ पर (पह) जीवोंका माल-दोपकारक और बालक जीवों का मांस रसदायक और हलका है। सर्पके काटनेने मरे हुए जी का मांस और सूखा मांस त्रिदोषकारक है। हिंसक जीवोंके काटनेले परे हुए जीबोका मांस, सूखा मांस और इषित मांस अत्यन्त शुलकारक है ॥ १० ॥ अथ विषादिमृतस्य ( विषमृतका) मांसम् । विषाम्बुरुङ्मृतस्यैतन्मृत्युदोषरुजाकरम् । क्लिन्नमुत्क्लेशजनकं कृशं वातप्रकोपणम् । तोयपूर्ण शिराजालं मृगमप्सुत्रिदोषकृत् ॥ ९॥ विष, रोग, अषमा जनके मर हुए जीवोंका मांस दोगे को उत्पन्न करनेबाला, रोगकारक और मृत्युदायक है । गीला माल-ग्लानिकारक, कृथ करनेवाला और वात कोप है जिनकी नामें जल भर गया हो उसका माज ओर जलमें मरे हुर का मान विदोष कारी है ॥९१ ॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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