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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. 1
(३५९)
पत्रशाकेषु वास्तुकं जीवंती पोत्तिका वरा । पटोलं फलशाकेषु कंदशा वेषु सुरणम् ॥ १४ ॥ एणः कुरंगो हरिणों जांगलेषु प्रशस्यते । पक्षिणां तित्तिरी लावो वरो मत्स्येषु रोहितः ॥ १५ ॥ जलेषु दिव्यं दुग्धेषु गव्यमाज्येषु गोभवम् । तैलेषु तिलजं तैलमैक्षवेषु सिता हिता ॥ १६ ॥
शाली धान्यों में रक्तवर्णकी शाली, षष्टिकचावलों में साठीके चावल, शूकधान्यों में जौ तथा गेहूँ श्रेष्ठ हैं। शिम्बी धानों में मूँग, मसूर, अरहर उत्तम हैं । रसों में मधुर और लवणोंमें सैंधवलवण श्रेष्ठ है। फलों में अनार, आमला, अंगूर, खजूर, फाळसा, बडी, जामन और बिजोरा श्रेष्ठ है । पत्रशाकों में बाथुमका शाक, जीवंतीका शाक तथा पोईका शाक श्रेष्ठ है । फलशाकों में पटोल, और कंदशाकोंमें जमीकंद श्रेष्ठ होता है । जंगल के मांसो में एग कुरंग तथा हरिणोंका, पक्षियोंमें तित्तर मौर लवाका तथा महस्योंमें रोहित मत्स्यका मांस हितकारक है । जलोंमें प्रकाशका जल, दूध और घीमें गऊका दूध और घी, तेलीमें तिलका केल और इक्षुविकारों मिखिरी हितकारक है ।। ११-१६ ॥
स्वभावादहितानि ।
शिबीषु माषान् ग्रीष्मत लवणेष्वौषरं त्यजेत् । फलेषु लकुचं शाकेसार्षपं न हितं मतम् ॥ १७ ॥ गोमांसं ग्राम्यमांसेषु न हिता महिषीवसा । मेषीपयः कुसुंभस्य तैलं त्याज्यं च फाणितम् ॥१८॥
शिबिधान्यों में से ग्रीष्म ऋतुमें माषों को और लवणोंमेंसे ऊपर नमकको त्याग देना चाहिये । फलोंमें बडद्दर, शाकोंमें सरसोंक पनका शाक हानिकारक है । ग्राम्य मांसोंनें गोमांस और भैसोंका मांस, दूधोंमें