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भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
खट्टी, दीपन, रुचिकारक, पाचन, शीघ्र प्रभाव दिखलानेवाली, तीक्षण, विशद, सूक्ष्म, व्यवायी और विकाशी है ॥ १७-२० ॥
आरिष्टम् ।
पक्वौषधाबुसिद्धं यन्मद्यं तत्स्यादरिष्टकम् | अरिष्टं लघुपाकेन सर्वतश्च गुणाधिकम् ॥ २१ ॥
पकाई हुई औषधियों और जलसे जो मद्य बनाई जाय उसको अरिष्ट कहते हैं। अरिष्ट - पाक में लघु और सब प्रकार से अधिक गुणोंवाला है । जिन द्रव्यों से अरिष्ट बनाया गया हो उन द्रव्योंमें जो गुण दो वदी अरिटके होते हैं ॥ २१ ॥
अरिष्टस्य गुणा ज्ञेया बीजद्रव्यगुणैः समाः । शालिषष्टिकपिष्टाद्यैः कृतं मद्यं सुरा स्मृता ॥ २२ ॥ सुरा गुर्वी बलस्तन्यपुष्टिमेदः कफप्रदा । ग्राहिणी शोथगुल्माशग्रहणी मूत्रकृच्छ्रनुत् ॥ २३ ॥ चावल अथवा साठी के चावल के चूर्ण ग्रादिकों से बनाए हुए मचको सुरा कहते हैं। सुरा-भारी, ग्राही तथा बल, स्तनों में दूध, पुष्टि, मेद और कक इनको बढ़ाती है । एवं शोथ, गुल्म, अर्श, ग्रहणी और मूत्रकृ चक्रको हरनेवाली है ।। २२ ।। २३ ।।
पुनर्नवाशालिपिष्टिविहिता वारुणी स्मृता । संहितैस्तालखर्जूररसैर्या सापि वारुणीं ॥ २४॥
पुनर्नवा और साठी चावलों को शिलापर पीसकर जो मद्य बनाई जाय उसको वारुणी कहते हैं । अथवा ताल और खजूरको इकठ्ठा करके उनके इससे जो मद्य बनाई जाय उसको भी वारुणी कहते हैं। वारुणी सुके समान गुणों वाली है ! किन्तु उससे हल्की और पीनस, ग्राध्मान तथा को नष्ट करनेवाली है ॥ २४ ॥
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