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भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
( ३२४ )
मथित-कफ पित्तको दूर करनेवाला है !
तक-ग्राही, कसैना, खट्टा, पाक और रसमें स्वादु, हलका, उष्णवीर्य,. दीपन, वीर्यवर्धक, तृप्तिकारक, वातनाशक और ग्रहणी सादि रोगवालौके लिये पथ्य है ।
तक्र- लघु होनेसे ग्राही, पाकमें किंचित स्वादु होनेसे वातको प्रकुपित न करनेवाला, कषाय, गरम, विकाशी तथा रूक्ष होने से कफनाशक होता है ।। ३-६ ॥
न तत्रसेवी व्यथते कदाचिन्न तक्रदग्धाः प्रभवंति रोगाः । यथा सुराणाममृतं सुखायतथानराणां भुवितक्रमादुः ॥ अम्लेन वातं मधुरेण पित्तं कफंकषायेण निहंति सद्यः । उदश्वित्कफकद्वयमामध्नं परमं मतम् ॥ ८॥ छच्छिका शीतला लघ्वी पित्तश्रमतृषाहरी । वातनुत्क फकत्सा तु दीपनी लवणान्विता ॥ ९॥
तकको सेवन करनेवाला मनुष्य रोगी नहीं होता, तक्रसे नष्ट किये हुए रोग फिर नहीं बाते । जैसे देवताओंके लिये अमृत सुखदायक है वैसे ही मनुष्योंके लिये तक्र है ।
तक्र- अम्लरस से वातको, मधुर रससे पित्तको और कषायसे कफको शीघ्र ही नष्ट कर देता है ।
उदश्वित-कफकारक, बलवर्धक और आमनाशक होता है ।
छच्छिका - शीतल, हलकी, दीपन, लवणरसयुक्त, कफकारक, वातनाशक तथा पित्त, श्रम और तृषाको दूर करती है ॥ ७-९ ॥ उद्धृतघृतस्तोकोद्र्धृतघृतानुद्धृतघृतानि ।
समुद्धृतं घृतं तत्रं पथ्यं लघु विशेषतः । स्तोकोद्धृतघृतं तस्माद् गुरु वृष्यंकफावहम् ॥१०॥ अनुद्धृतघृतं सांद्रं गुरु पुष्टिकफप्रदम् ।
जिस तक में से सम्पूर्ण मक्खन निकाल लिया हो वह पथ्य और अत्यन्त