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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। . (२८१) ककड़ी प्यास अग्नि और पित्तको बढ़ाती है । इसे अंग्रेजीमें Cucumber कहते हैं ॥ ६० ॥ ६१ ॥
चिचिंडा। चिंचिडा श्वेतराजिः स्यात्सुदीर्घा गृहकूलकः । चिचिंडो वातपित्तनो बल्यः पथ्यो रुचिप्रदः ६२॥
शोषिणोऽतिहितः किंचिद्गुणन्यूनः पटोलतः । चिचिण्डा, श्वेतराजि, सुदीघी और गृहकूलक यह चचिण्डेके. नाम हैं। चचिण्डा-गात-पित्तनाशक, बलकारक, पथ्य, रुचिकारक, थोषके लिये अत्यन्त हितकारी, पटोलसे गुणों में किंचित न्यून होता
कारखेलम् । कारवेल्लं कठिल्लं स्यात्कारवेल्ली ततोलघुः ॥६॥ कारवेल्लं हिमं भेदि लघु तिक्तामवातलम् । ज्वरपित्तकफास्रघ्नं पांडुमेहकृमीन् हरेत् ॥ ६४ ।। तद्गुणा कारवेल्ली स्याद्विशेषाद्दीपनी लघुः । कारवेल्ल, कठिल्ल यह बड़े करेले के नाम हैं। छोटे करेलेको कारवेल्ली कहते हैं। इसे अंग्रेजी में Hairy mordica कहते हैं। कोला-शीतन, भेदी, हल्का, तिक्त, आमवातकारक, ज्वर, कफ, रक्तविकार, पाण्डु, प्रमेह और कृमिको दूर करने वाला होता है। करेली में भी यही गुण हैं। दिशेष कर अग्निको दीपन करती है और हल की
महाकोशात की। महाकोशातकी ज्योत्स्नाहस्तिघोषा महाफला॥६५॥ धामार्गवो घोषकश्च इस्तिपर्णश्च स स्मृतः । महाकोशातकी स्निग्धा रक्तापत्तानिलापहा ॥६६॥ महाकोशातकी, ज्योत्स्ना, हस्तियोषा महाफला, धामार्गव, घोषक