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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (२७७)
कासमर्दम् । कासमर्दोऽरिमर्दश्च कासारिः कर्कशस्तथा ॥ १२ ॥ कासमर्ददलं रुच्यं वृष्यं कासविषास्रनुत् । मधुरं कफवातघ्नं पाचनं कंठशोधनम् ॥ १३ ॥ विशेषतः कासहरं पित्तघ्नं ग्राहकं लघु । कालमर्द, परिमर्द, कासारि, कश यह कसौंदी के नाम हैं। कलौंदीके पत्र रुचिकारक, वृष्य, कालन, विषनाशक, रक्तजित, मधुर, ककवातनाशक, पाचन, कण्ठशोधक, पित्तनाशक, ग्राही, हल्के पौर विशेष -तासें खांसीको दूर करते हैं ॥ ४२ ॥ ४३ ॥
चणकम् । रुच्यं चणकशाकं स्यादुर्जरं कफवातकृत् ॥ १४ ॥ अम्लं विष्टंभजनकं पित्तनुदंतशोथहृत् । चनेके पत्रोंका साग रुचिकारक, दुर्जर, कफवातबईक, यमन, विष्टअकारी, पित्तनाशक और दांतों की सूजनको हरनेवाला है। ४४ ॥
कलायः। कलायशाकं भेदि स्याल्लघुतितत्रिदोषजित् ॥ ४५ ॥ कलायशाक-भेदी, हल्का, तिक्त और त्रिदोषनाशक होता है ॥ ४५ ॥
सार्षपम् । कटुकं सार्षपं शाकं बहुमूत्रमलं गुरु । अम्लपाकं विदाहि स्यादुष्णं रूझ त्रिदोषकृत॥४६॥ सक्षारं लवणं तीक्ष्ण स्वादु शाकेषु निंदितम् । सरसों का साग-कड, मलमूत्रवर्धक, भारी, अम्लपाकी, विदाही, उष्ण, कक्ष, त्रिदोषकारक, क्षारयुक्त, लवणानुरस तीक्ष्ण पौर सादु होता है। सरसोंका शाक साशाकोंमें निन्दित है ॥ ४६ ॥
इति पत्रशाशनि yanam