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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. । (२७५)
इनको घृत या तेल में छौंक दिया जाय तो त्रिदोषनाशक होते हैं और विना पकाए कफपित्तकारक होते हैं ॥ ३३ ॥
द्रोणपुष्पी ।
द्रोणपुष्पीदलं स्वादु रूक्षं गुरु च पित्तकृत् । भेदनं कामलाशोथ मेहज्वरहरं कटु || ३४ ॥
द्रोणपुष्पी के पत्र -स्वादु, रुक्ष, गुरु, पित्तकारक, भेदन और कटु हैं तथा कामना, शोथ, प्रमेह और ज्वरको दूर करते हैं ॥ ३४ ॥
यवानी | यवानी शाकमाग्रेयं रुच्यं वातकफप्रणुत् । उष्णं कटु च तिकंच पित्तलं लघु शूलहृत् ॥३५॥
यवानीके पत्रोंका शारु-गर्म, रुचिकारक, वातकफनाशक, उष्ण, कटु, तिक्त, पित्तकारक, हलका और शूलनाशक है ॥ ३५ ॥
दद्रुघ्नम् ।
दद्रुघ्न पत्रं दोपप्रमम्लं वातकफापहम् | कण्डूकास मिशालकुष्ठप्रलघु ॥ ३६ ॥
ager (पत्रवाड ) के पत्र दोषघ्न, अमृत, वात-कफनाशक, हलके तथा खुजली, काल, कृमि, श्वास, दाद और कुष्ठको हरने वाले हैं ॥ ३६ ॥
तेहुडम् ।
सेहुण्डस्य दलं तीक्ष्णं दीपनं रेचनं हरेत् । आध्मानाष्ठीलिका गुल्म शूलशोथोदराणि च ॥ ३७ ॥
थोहरके पत्र - तीक्ष्ण, दीपन और रेचक अडोला, गुरु, शू, शोष चोर उ
होते हैं । एवम् आनान
कते हैं । ३७४
को दूर क