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(२६६) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.। हैं। कोद्रव-पातकारक, प्राही, शीतल और पित्तकफनाशक है। उद्दाल उण, ग्राही और वातकारक होता है । ८२ ॥
शरबीजम् । चारुकः शरबीजं स्यात्कथ्यते तद्गुणा अथ। चारुको मधुरो रूक्षो रक्तपित्तकफापहः ॥ ८३ ॥
क्षीतो लघरवृष्यश्च कषायो वातकोपनः । .. चारुक, शरबीज यह सरपतेके बीजोंके नाम हैं। चारुक-मधुर, रूक्ष, रक्तपिननाशक, कफघ्न, शीतल, हल्का, वीर्यनाशक, कषाय और वात.. कोपकारक होता है ॥ ८३ ॥
वंशवीजम् । या वंशभवा रक्षाः कषायाः कटुपाकिनः ॥८॥ बद्धमूत्राः कफनाश्च वातपित्तकराः सराः । बांसके जौ-रूखे, कलैले, कटुपाकी, मूचना, कफनाशक, वातपित्तका. रक पौर दस्ताघर होते हैं ॥ ८४ ॥
कुसुम्भबीजम् । कुसुम्भबीजं वरटा सेवा प्रोक्ता वराटिका ॥ ८५ ॥ वरटा मधुरा स्निग्धा रक्तपित्तकफापहा । कषायाशीतला गुरूस्यादवृष्यानिलापहा ॥ ८६॥ कुसुभबीज, वरट, वराटिका और करड यह कुसुंभके बीज का नाम है। करड-मधुर, स्निग्ध, रक्तपिननाशक, कफघ्न, कषाय, शीतल, भारी, अवृष्य पौर वायुको हरनेवाले होते हैं ।। ८५ ।। ८६ ।।
गयेधुः । गवेधुका तु विद्वद्भिर्गवेधुः कथिता स्त्रियाम् । गवेधुः कटुका स्वाद्वी कार्यकृत्कफनाशिनी ॥८७॥ गोधुका-स्त्रीलिगवाचक है। गवेधु-कटु, स्वादु, कृश करनेवाली और कफनाशक है ।। ८७ ।।
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