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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. दी. ।
((२६१)) कहते हैं । चना-शीतल, रूक्ष, पित्त, रक्तविकार और कफनाशक, हल्का, कषाय, विष्टभी, वातकारक, ज्वरनाशक है। अग्नि या तेल में भुने हुए चनों के भी यही गुण हैं । गोले भुने हुए चने बलकारक और रुचिकारक हैं। सूखे भूने हुए चने अतिरुक्ष, वात पितको कोप करनेवाले होते हैं। छौंके हुए चने पित्त और कफको नाश करते हैं । चनेका सूपक्षोभकारक है । गीले चने - कोमल, रुचिकारक, पित्त और शुक्रनाशक, हितकारक, कसैला, वातकारक, ग्राही, कफ पित्तनाशक और हल्के होते हैं ॥ ५४-५८ ॥
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कलायः ।
कलायो वर्तुलः प्रोक्तः सतीनश्चः हरेणुकः । कलायो मधुरः स्वादुः पाके रूक्षश्च शीतलः ॥ ५९ ॥
अंग्रेजी में
कलाय, वर्तुल, सतीन, हरेणुक यह मटरके नाम हैं । इसे Field Pea कहते हैं । मटर-मधुर, मधुरपाकी, रूखा तथा शीतल है ॥ ५९ ॥
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त्रिपुटः ।
त्रिपुटःकंटकोऽपि स्यात्कथ्यते तद्गुणा अमी । त्रिपुटो मधुरस्तिक्तस्तुवरो रूक्षणो भृशम् ॥ ६० ॥ कफपित्तहरो रुच्यो ग्राहको शीतलस्तथा । किंतु खंजत्वपंगुत्वकारी वातातिकोपनः ॥ ६१ ॥
त्रिपुट, और कंटक यह त्रिपुटके नाम हैं, अंग्रेजी में इसे Chickiling Vetch कहते हैं। त्रिपुट-मधुर, तिक्त, कषाय, रूक्ष, उष्ण, कफपित्तना शक, रुचिकारक और शीतल है। किन्तु खं जत्व और लंगडापनको करनेवाली तथा वातको अत्यन्त कुपित करनेवाली है ॥ ६० ॥ ६१ ॥
कुलत्थः ।
कुलत्थिकाकुलत्थश्च कथ्यते तद्गुणा अथ । कुलत्थः कटुकः पाके कषायः पित्तरक्तकृत् ॥६२॥