________________
हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. ।
( २५७ )
मधूली गेहूं-शीतल, स्निग्ध, पित्तनाशक, मधुर, हल्की, वीर्यवर्धक मौर बृंहण होती है। यही गुण नन्दीमुखमें भी हैं ॥ ३२-३६ ॥
शिवीगुणाः
शमीजाः शिविजाः शिविभवाःसूपाश्च वेदलाः ॥३७॥ वेदला मधुरा रूक्षाः कषायाः कटुपाकिनः । वातलाः कफपित्तघ्ना बद्धमूत्रमला हिमाः ॥ ३८ ॥ ऋते मुद्रममूराभ्यामन्ये त्वाध्मानकारिणः ।
शमीज, शिविज, शिविभव, सूप और वैदल यह दो दानवाले मूंग, माष चणक, मटरादिकों के नाम हैं । वैदल- मधुर, रूक्ष, कषाय, कटुपाकी, वातकारक, कफपित्तनाशक, मलमूत्रको बाँधनेवाले और शीतल होते हैं। इनमें मूंगी और मसूरके सिवाय सब द्विदल पेटमें दबाको भरनेवाले होते हैं ॥ ३७ ॥ ३८ ॥
मुद्रम् ।
मुद्रो रूक्षो लघुग्राही कफपित्तहरो हिमः || ३९ ॥ स्वादुरल्पानिलो नेत्र्यो ज्वरघ्नो वनजस्तथा । मुद्रो बहुविधः श्यामो हरितः पीतकस्तथा ॥ ४० ॥ श्वेतो रक्तश्च तेषां तु पूर्वः पूर्वो लघुः स्मृतः । सुश्रुतेन पुनः प्रोक्तो हरितः प्रवरो गुणैः ॥ ४१ ॥ चरका दिभिरप्युक्त एष ह्येव गुणाधिकः ।
मूंगी- रूक्ष, लघु, ग्राही, कफ-पित्तनाशक, शीतल, स्वादु, अल्पबात, नेत्रोंको हितकारी और ज्वरनाशक होती है । वनमूंग के भी बही गुण हैं । मूंगी - श्याम, हरित, पीत, श्वेत और रक्तभेद से बहुत प्रकारकी होती है । इनमें क्रमपूर्वक पहली पहली विशेष हल्की होती है । किन्तु सुश्रुत
१७