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हतियादिनिघण्टुः भा. टी.। (२५५) लक्षण दिखाने से यह भी व्रीहि कहाते हैं। साठी धान्य-मधुर, शीतल, हरके, मलरोधक, वातपित्तनाशक और शालिधान्यके समान ही गुणवाले होते हैं। परन्तु साठी चावल इनमें श्रेष्ठ, हत्के, स्निग्ध, त्रिदोषनाशक, मृदु, स्वादु, ग्राही, बलदायक और ज्वरनाशक हैं। प्रायः रक्तशालिके समान गुणवाले हैं। अन्य सब प्रकारके चावल इनसे गुणों में न्यून होते हैं । २२–२६ ।
यकः।
अनुयवो निःशूकः स्यात्कृष्णारुणवर्णो यवः । निःशूकोऽपि यवः प्रोक्तो धवलाकृतिकोमहान् ॥२७॥ यवस्तु शितशूकास्यानिःशूकोऽनुयवः स्मृतः। तोक्मस्तद्वत्तहरितस्ततः स्वल्पश्च कीर्तितः ॥२८॥ यवः कषायो मधुरः शीतलो लेखनो मृदुः। व्रणेषु तिलवत्पथ्योरूक्षो मेधाग्निवर्द्धनः ॥ २९ ॥ कटुपाकोऽनभिष्यंदी स्वयों बलकरो गुरुः बहुवातमलो वर्णस्थैर्यकारी च पिच्छिलः ॥३०॥ कण्ठत्वगामयश्लेष्मपित्तमेदाप्रणाशनः । पीनसश्वासकासोरुस्तंभलोहिततृत्प्रणुत् ॥ ३१॥
अस्मादनुयवो न्यूनस्तोक्मो न्यूनतरस्ततः। अनुयक्ष, निःशूक, कृष्णयव पौर अरुणयव, यह यवोंकी जातियाँ हैं। इनमें निःशूक यव श्वेत और बड़े आकारवाले होते हैं, साधारण या सित शूकवाले होते हैं । निःशूक योंको अनुयव भी कहते हैं, जो किंचित हरे वर्णके और छोटे आकारवाले हैं उनको तोक्म कहते हैं,। यव-कषाय; मधुर, शीतल, लेखन, मृदु, व्रणोंमें तिलों को समान पथ्य, रूक्ष, मेधा