________________
हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. ।
( २०७ )
खात, आम, गर, शोथ और व्रणको दूर करता है । इसके फलोंको टीड और डेले भी कहते हैं। अंग्रेजीमें Aper कहते हैं ॥ ५९ ॥ ६० ॥
शाखोटः ।
शाखोट' पीतफलको भूतावासः खरच्छदः । शाखोटो रक्तपित्ताशयात श्लेष्मातिसारजित् ॥ ६१॥
शाखोट, पीतफल, भूतावास, खरच्छद यह शाखोटके नाम हैं। इसको सहोडा वृक्ष भी कहते हैं। शाखोट-रक्तपित्त, अर्श, वात, कफ और अतिसारको दूर करता है ॥ ६१ ॥
वरुण ।
वरुणो वरणः सेतुस्तिक्तशाकः कुमारकः । कषायो मधुरस्तिक्तः कटुको रूक्षको लघुः ॥
६२ ॥
वरुण, वरण, सेतु, तिक्तशाक, कुमारक यह वरुण वृक्षके नाम हैं । इसको वसा और अरना वरना भी कहते हैं। वरुण कषाय, मधुर, तिक्त, कटु, रूक्ष और हल्का होता है ॥ ६२ ॥
कटभी |
कटभी स्वादुपुष्पा च मधुरेणुः कटंभरा । कभी तु प्रमेहार्शोनाडीव्रण विषक्रिमीन् ॥ ६३ ॥ अत्युष्णा कफकुष्ठघ्नी कटू रूक्षा च कीर्तिता । तत्फलं तुवरं ज्ञेयं विशेषात्कफशुक्र ॥ ६४ ॥
कटभी, स्वादुपुष्षा, मधुरेणु यह कटभीके नाम हैं । कभी - प्रमेह, अर्श, नाडीव्रण, विष और कृमियोंको नष्ट करती है । अत्यंत उष्ण है । कफ और कुष्ठ को हरनेवाली है, कटु है और रूक्ष है । इसके फल कसैले होते हैं। विशेष कर कफ और वीर्यका नाश करते हैं ॥ ६३ ॥ ६४ ॥