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(२०४) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
तुन-पाकमें कटु, कसैली, मधुर, हलकी, तिक्त, ग्राही, शीतल, पी+ वर्धक तथा व्रण, कुष्ठ, रक्तपित्त इनको जीतती है ॥ ४४ ॥ ४५ ॥
भूर्जपत्रः। भूजपत्रः स्मृतो भूर्जश्चर्मी बहुलवल्कलः ॥ ४६॥ भूजों भूतग्रहश्लेष्मकर्णरुक्पित्तरक्तजित् । कषायो राक्षसघ्रश्च मेदोविषहरः परः ॥ १७॥ भूजपत्र, भूजचर्मी और बहुलवल्कल यह भोजपत्रके नाम हैं। इसको अंग्रेजीमें Jacpuemontri कहते हैं । भोजपत्र-कसैला, राक्षसनाशक तथा भूतग्रह, कफ, कान की पीड़ा, पिन, रक्तविकार, मेद और विषको करनेवाला है॥४६ ॥४७॥
पलाशः। पलाशः किंशुकः पर्णो याज्ञिको रक्तपुष्पकः । क्षारश्रेष्ठो वातहरो ब्रह्मवृक्षः समिद्वरः ॥ १८॥ पलाशो दीपनो वृष्यः सरोष्णो वणगुल्मजित् । कषायः कटुकस्तिक्तः स्निग्धो गुदजरोगजित् ॥१९॥ भग्नसंधानकृदोषग्रहण्यर्शकृमीन् हरेत । पखाश, किंशुक, पर्ण, याज्ञिक, रक्तपुष्पक, कारश्रेष्ठ, वातार, ब्रह्मवृष और समिधर यह ढाकके नाम हैं । इसको अंग्रेजी में Jaxin mot
ढाक-दीपन, वीर्यवर्धक, दस्तावर, गाम, बण, और गुल्मको जीतनेवाखा, कसैला, कडु, तिक्त, स्निग्ध, गुदाके रोगको जीतनेवाला, दूटे हुएको जोडनेवाला तथा शिदोष, ग्राणी, अशे और कृमि शेको नष्ट करनेवाला २॥१८॥१९॥
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