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(१८६) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.।
कच्ची दाख--थोड़े गुणोंवाली तथा भारी है। खट्टी दाख-रक्तपित कारक है । गौके स्तनके समान आकारवाली दाख-वीर्यवर्धक, भारी तथा कफ और पितको नष्ट करनेवाली है। बीजों से रहित दाख-गोस्तनोके समान गुणों वाली है । पर्वतमें उत्पन्न हुई दाख-हन की, खट्टी, कफ तपा अम्लपिनके करनेवाली है, पर्वतोपत्र द्राक्षाके समान ही करमर्दिका भूम्बेके गुण हैं ॥ ११०.११५ ॥
क्षुद्रखर्जूरं पिंडखजूंरं च ।
भूमिखर्जुरिका स्वादी दुरारोहा मृदुच्छदा । तथा स्कन्धफला काककर्कटी स्वादुमस्तका ११६॥ पिंडखर्जुरिका त्वन्या सा देशे पश्चिमे भवेत । खर्जुरी गोस्तनाकारा परद्वीपादिहागता ॥ ११७ ॥ जायते पश्चिमे देशे सा छोहारेति कीर्तिता। खजुरीत्रितय शीतं मधुरं रसपाकयोः ।। ११८ ॥ स्निग्धं रुचिकरं हृद्यं क्षतक्षयहरं गुरु । तर्पणं रक्तपित्तघ्नं पुष्टि विष्टंभशुक्रदम् ॥ ११९॥ कोष्ठमारुतहरल्यं वांतिवातकफापहम् । जरातिसारक्षुत्तृष्णाकासश्वासनिवारकम् ॥ १२० ॥ मदमूर्छामरुत्पित्तमद्योद्भूतगदान्त्यकृत् । महतीभ्यां गुणैरल्पा स्वल्पा खजूरिका स्मृता १२१ खजुरितरुतोयं तु मदपित्तकरं भवेत् । वातश्लेष्महरं रुच्य दीपनं बलशुक्रकृत् ॥ १२२ ॥ भूमिखजूरिका, स्वादी, दुगरोहा, मृदुच्छदा, स्कंधकला, काकककटी पौर स्वादुमरवका यह खजूर के नाम जो खजूर पश्चिम देशमें