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(१८२) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.।
फलं शीतं गुरु स्वादु शुकलं वातपित्तनुत् ॥ ९५ ।। अहृद्य हंति तृष्णास्त्रदाहश्वासक्षतक्षयान् । मधूक, गुडपुष्प, मधुपुष्र, मधुस्रव, वानप्रस्थ और मधुष्ठीन यह महुए के नाम हैं। जल में उत्पन्न महुएको मधूलक और जलमहुआ करते हैं। इसकी फारसीमें जका और अंग्रेजीमें Elloo Patree कहते हैं। महुपके फूल-मधुर, शीतल, गुरु, बृहण, बलकारक, वीर्यवर्द्धक और वात, पिनको नाश करनेवाले हैं। महुएके फल-शीतल, भारी, मधुर, वीर्यवईक, वात, पित्तनाशक और हृदय के लिये हानिकारक हैं। तथा प्यास, रक्त, दाह, श्वास, क्षत और ज्यको दूर करते हैं ।। ९३-९५ ॥
. . पालवतम् । पालेवतं सितं पुष्पैस्तिदुकाभं फलं मतम् ॥ ९६ ॥ अन्यान्माणवकं ज्ञेयं महापालेवतं तथा । स्वादम्लं शीतमुष्णं च द्विधा पालेवतं गुरु ॥९७॥ यत स्वादु मधुरं तच्छीतं यदम्लं तदुष्णकम् ।
उभयमपि गुरु इति हेमाद्रिः। पालेवतके फूल श्वेत होते हैं, फल विन्दुके समान होते हैं। दूसरा पालेवत माणवक और महापानेवत नामसे प्रसिद्ध है । पालेषत पहाडी सेवकी छोटी जाति है । अपालो और पालो नामसे प्रसिद्ध है। पालेषतमीठे और खट्टे दो प्रकार के होते हैं। मीठे शीतल पौर खट्टे उष्णस्वभावबाले होते हैं। दोनों प्रकारके पालेवत भारी होते हैं। यह हेमाद्रिका मत १॥९६॥ ९७ ॥
परूषकम् । परूषकं परुषकमल्पास्थि च परापरम ॥ ९८॥ परूषकं कषायाम्लमामं पित्तकरं लघु