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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. ।
मोचाफलम् ।
( १६९ )
कदली वारणसा रंभा मोर्चाशुमत्फला ॥ ३१ ॥ मोचाफलं स्वादु शीतं विष्टंभि कफनुद्गुरु 1 स्निग्धं पित्तास्रतृड्रदाहक्षतक्षयसमीरजित् ॥ ३२ ॥ पक्वं स्वादु हिमं पाकं स्वादु वृष्यं च बृंहणम् । क्षुनेत्रामयहरं मेहनं रुचिमांसकृत् ॥ ३३ ॥ माणिक्यमय मृतचंपकाद्या भेदाः कदल्या बहवोऽपि संति । उक्ता गुणास्तेष्वधिका भवंति निदाषता स्याल्लघुता च तेषाम् ॥ ३४ ॥
कदली, वारणा, रंभा, मोचा, अंशुमत्फला यह कदलीके नाम हैं 1 इसे हिंदी में केला, फारसी में मावजबोझ, अंग्रेजीमें Plantain कहने हैं ।
कदलीफल - स्वादु, शीतल, विष्टम्भकारक, कफनाशक, भारी, स्निग्ध पौर पित्त, रक्तविकार, तृषा, दाह, क्षत, क्षय और वायुको नष्ट करनेवाले होते हैं । केले का पका हुआ फल-स्वादु, शीतल, पाकमें मधुर, वीर्यवर्धक, पुष्टिकारक, रुचि तथा मांसको बढानेवाला और भूख, प्यास, नेत्रोंके रोग तथा प्रमेहको नष्ट करनेवाला है। माणिक्य, मर्त्य, अमृत तथा चम्पकादि भेदोंसे कदली कई प्रकारकी है। उनमें उक्त गुण हैं किन्तु निर्दोषता और लघुता यह अधिक हैं ।। ४१-३४ ॥
चिर्भटम् ।
चिर्भटं धेनुदुग्धं च तथा गोरक्षकर्कटी । चिर्भटं मधुरं रूक्षं गुरु पित्तकफापहम् ॥ ३५ ॥