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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (१६१) शूलध्नी और देवदुंदुभि यह तुलसीके नाम हैं। इसे हिन्दीमें तुनसी, फारसीमें रेहान और अंग्रेजीमें White Basil कहते हैं।
तुलसी-कटु, तिक्त, हदयको प्रिय, गरम, दाह और पित्तको करनेवाली, दीपन और कुष्ठ, कृच्छ्र, रक्तविकार, पसलीका शूल, कफ और वात इनको नष्ट करती है। काली और श्वेत दोनों प्रकारकी तुलसी गुणोंमें समान ही है ॥ ६० ॥ ६१ ॥
__मरुचकः। मारुतको मरुबको मरुन्मरुरपि स्मृतः ॥ ६२ ।। फणीफणिज्जकश्चापि प्रस्थपुष्पः समीरणः । मरुदग्निप्रदो हृयस्तीक्ष्णोष्णः पित्तलो लघुः॥६३॥ वृश्चिकादिविषश्लेष्मवातकुष्ठकृमिप्रणुत् । कटुपाकरसो रुच्यस्तितो रूक्षः सुगंधिकः ॥ ६४ ॥ मारुतक, मरुबक, मरुव, मरु, फणि, फणिजक, प्रस्थपुष्प और समीरण यह मारुतकके नाम हैं। हिन्दी में इसे मरुवा, फारसी में मर्जगुल और अंग्रेजी में Sweet Mary aran कहते हैं।
मरुवा-अग्निवर्धक, हृदयको प्रिय, तीक्ष्ण, उष्ण, पित्त कारक, हलका, पाक और रसमें कटु, रुचिकारक, तिक्त, रूक्ष, सुगन्धयुक्त और विच्छू भादिके विष, कफ, वात, कुष्ठ और कृमि इनको दूर करनेवाला है। ६३-६४॥
दमनकः। उक्तो दमनको दांतो मुनिपुत्रस्तपोधनः । गंधोत्कटो ब्रह्मजटो विनीतः कुलपुत्रकः ॥ ६ ॥ दमनस्तुवरस्तितो हृयो वृष्यः सुगंधिकः । ग्रहणीविषकुष्ठास्रक्लेदकंडुत्रिदोषजित् ॥६६॥ दमनक, दान्त, मुनिपुत्र, तपोधन, गन्धोत्कट, ब्रह्मजट, विनीत
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Ano! Shrutgyanam