________________
हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. ।
सुदर्शना ।
सुदर्शना सोमवल्ली चक्राह्वा मधुपर्णिका ॥ ३१३ ॥ सुदर्शना स्वादुरुष्णा कफशोफास्रवातजित् ।
( १४७ )
सुदर्शा सोमवल्ली, चक्राहा, मधुपर्णिका यह सुदर्शनाके नाम हैं। सुदर्शना - स्वादु, उष्ण, कफ, सूजन, रक्त पौर वातको जीतनेवाली हे ॥ ३१३ ।।
आखुकर्णी ।
आखुकर्णी त्वाखुकर्णपर्णिका भूदरीभवा ॥ ३१४ ॥ आखुकर्णी कटुतिक्ता कषाया शीतला लघुः । विपाके कटुका सूत्रकफामयकृमिप्रणुत् ॥ ३१५ ॥
आखुकर्णी, आखुकर्णपणिका, भूदरीभवा यह मूसाकन्नी के नाम हैं । मूसा कन्नी कटु, तिक्त, कषाय, शीतल और हलकी है, विपाकमें कटु तथा मूत्र और कफके रोगों और कृमियोंको दूर करती है ॥ ३१४ ॥ ३१५ ॥ मयूरशिखा । मयूराह्नशिखा प्रोक्ता सहस्रांत्रिर्मधुच्छदा । नीलकण्ठशिखा लघ्वी पित्तश्लेष्मातिसार जित ३१६ ॥ इति गुडूच्यादिवर्गः ।
मयूरशिखा, सहस्रांघ्रि, मधुच्छ दा, नीलकण्ठ शिखा यह मोरशिखाके नाम हैं। मोरशिखा- इल्की, पित्त कफ और प्रतिसारको जीतनेवाली है ॥ ३१६॥
इति श्रीवैद्यरत्न पण्डित राम प्रसादात्मज - विद्यालङ्कारशिवशर्मवैद्यशास्त्रिकृत- शिवप्रकाशिका भाषायां हरीतक्यादिनिघण्टौ गुडूच्यादिवर्गः समाप्तः ॥ ३ ॥
Ahod Shrutavanam