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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. 1
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बलामोटा कटुस्तिका लघुः पित्तकफापहा । मूत्रकृच्छ्रत्रणान् रक्षो नाशयेजालगर्दभम् ॥ ३०६ ॥ सर्वप्रहप्रशमनी विशेषविषनाशनी ।
जयं सर्वत्र कुरुते धनदा सुमतिप्रदा || ३०७ ||
नागदमनी, बलमोटा, विषापहा, नागपत्री, नागपुष्पी, महायोगेश्वरी यह नागदमनी के नाम हैं। नागदमनी कडु, तिक्त, हलकी, पिन कफना. शक तथा मूत्रकृच्छ्र, व्रण, राक्षसभय, जालगर्दभ और सर्व ग्रह को शमन करनेवालो है। विशेषतासे विषको नष्ट करती है तथा धन, बुद्धि और सर्वत्र जयको देनेवाली है । ३०५-३०७ ॥
बेलंतरी ।
वेल्लंतरो जगति वीरतरुः प्रसिद्धः श्वेता सितारुणविलोहितनीलपुष्पः । स्यानातितुल्य कुसुमः शमिसूक्ष्मपत्रः स्यात्कंटकी सजलदेशज एष वृक्षः ॥ ३०८ ॥ वेलंतरी रसे पाके विक्तस्तृष्णा कफापहा । मूत्राघाताश्म जिग्राहीयो निमूत्रानिलार्तिजित् ३०९
बेलन्तर, वीरतरु नामसे सर्वत्र प्रसिद्ध है । इसमें श्वेत, काले, लाळ, अत्यन्त बाल और नीलवर्णक पुष्प आते हैं। इसमें पुष्प चमेलीके पुष्पों के समान, इसक पत्र शमीके पोंके समान और बारीक होते हैं। इसकी टहनियों में कांटे होते हैं । इसके वृक्ष जलवानी भूमिमें उत्पन्न होते हैं, वेल्लन्तर - रस में और पाक में तिक्त होता है तथा प्यास, कफ, मूत्राघात और पथरीको जीतता है । ग्राही है, योनिरोग, मूत्ररोग, और वायुकी पीडाको दूर करता है ॥ ३०८ ॥ ३०९ ॥
Aho! Shrutgyanam
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