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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (१४३)
माकडिका। मार्कंडिका भूमिचरी मार्कडी मृदुरेचनी ॥ २९५ ॥ मार्कडिका कुष्ठहरी उधिःकायशोधनी। विषदुर्गधकासनी गुल्मोदरविनाशनी॥ २९६ ॥ माडिका, भूमिचरी, मार्कण्डी और मृदुरेचनी यह मार्कण्डिकाके नाम हैं। इसको देशभाषामें भुईखाखसा कहते हैं । भुईखाखसा-कुष्ठको हरनेवाली, वमन विरेचन द्वारा दोनों ओरसे शरीरको शुद्ध करनेवाली तथा विष, दुर्गन्ध, खांसी, गुल्म और उदररोगको नष्ट करती है॥ २९५ ।। २९६ ॥
देवदाली। . देवदाली तु वेणी स्यात्कोंटी च गरागरी। देवताडो वृत्तकोषस्तथाजीमूत इत्यपि ॥ २९७ ॥ पीतापरा खरस्पर्शा विषघ्नी गरनाशनी ।
देवदाली रसे तिक्ताकफाशःशोफपांडताः ॥ २९८॥ नाशयेद्वामनी तिक्ता क्षयहिक्काकृमिज्वरान् । देवदालीफलं तिक्तं कृमिश्लेष्मविनाशनम् ॥२९९ ॥ संस्रन गुल्मशलघ्नमर्शोघ्नं वातजित्परम । देवदाली, वेणी, कर्कोटी, गरागरी, देवनाड, वृत्तकोश और जीमूत यह बन्दाल डोडेके नाम हैं। इसको घघरबेल भी कहते हैं, इसका भेद पीतदेवदाली है । इसके नाम खरस्पर्शा, विषघ्नी और गग्नाशिनी है। देवदालीरसमें तिक्त है, कफ, अर्श, सूजन और पाण्डुरोगको नष्ट करती है। एवं वमन कर्ना, तिक्त तथा क्षय, हिचकी, कृमि और ज्वरोंको नष्ट करती है । देतदालीके फल-तिक्त हैं, कृमि, कफ, गुल्म, शूल, अर्थ और वायुको जीतनेवाले हैं तथा दस्तावर हैं ॥ २९७-२९९ ॥