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__ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (१४१) ब्राझी हिमा सरा तिक्ता लघुर्मेध्या च शीतला। कषाया मधुरा स्वादुपाका पुण्या रसायनी ॥२८६॥ स्वय्यो स्मृतिप्रदा कुष्ठपांडुमेहास्त्रकासजित । विषशोथज्वरहरी तद्वन्मंडूकपर्णिका ॥२८७॥ ब्राह्मी, कपोतका, सोमवल्ली, सरस्वती यह ब्राह्मीके नाम हैं। मण्ड कपर्णी, माण्डूकी. स्वाष्ट्री, दिव्या और महौषधी यह मण्डूकपर्णो के नाम हैं।
ब्राह्मी-शीतल. दस्तावर, तिस्त, हलकी, बुद्धिवर्धक, उण्डी, कषाय, मधुर, स्वादुपाकी, पु
ती , स्वपर्धक, स्मृतिवर्द्धक कुष्ठ, पाण्ड, प्रमेह, रातविकार, खांसी, विष, शोथ मोर ज्वर के हरने वालो है ब्राझीके समान ही मण्डूकों के गुण हैं । ब्राह्मो और मण्डूषों में बड़े छोटे पत्रका किंचित भेद है, परन्तु बंगाल के वैद्य जल नीम को ब्राह्मो और दोनों प्रसकी ब्राह्मीको मण्डूकपर्णी ही मानते हैं ॥ २८५०.२८७ ॥
द्रोणपुष्पी। द्रोणा च द्रोणपुष्पी च फलपुष्पा च कीर्तिता। द्रोणपुष्पी गुरुः स्वादू रूसोष्णा वातपित्तकृत२८८ सतीक्ष्णा लवणा स्वादुपाका कट्वी च भेदनी।
कफामकामलाशोथतमकश्वासजंतुजित् ।। २८९ ।। द्रोणा, दोणपुष्पी और फरपुष्पा यह द्रोणपुष्पी के नाम हैं। देशभाषामें इसको गुरुग और बड़घल भी कहते हैं। द्रोणपुष्पी-भारी, स्वादु, रूक्ष, उष्ण, वातपितकारक, तीक्ष्ण, लवणरलयुक्त, स्वादुपाकी, कटु पौर दस्तावर हे तथा कफ, आम, कामला, शोथ, तमकपास और कृमि. योंको जीतनेवानी रे ॥ २८८ ॥२८९ ॥
सुवर्चला। सुवर्चला सूर्यभक्ता वरदा बदरापि च । सुर्यावर्ता रविप्रीता परा ब्रह्मासुवर्चला ॥ २९ ॥