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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (१३१) पुनर्नवारुणा तिक्ता कटुपाका हिमा लघुः । वातला ग्राहिणी श्लेष्मपित्तरक्त विनाशिनी॥२३८॥ रक्तपुजनवा, रक्ता, रक्तपुमा, शिवाटिका, शोथनी, वर्षाभू, वृष बेतु, कठिल्लि का यह लालपुनर्नवाके नाम हैं। लानपुनर्नवा--तिक्त, कटुपाकी, शीतल, हलकी, वातकारक, मलरोधक तथा कफ, पित्त और रक्तधिकारको दूर करती है ॥ ३३७ ।। २३८ ॥
एलायकः । एलायकः कृष्णबोलः कुमारी सारतोद्भवः । · कृष्णबोलः कटुः शीतो भेदको रसशोधकः।
शूलाध्मानकर्फ वातं कृमिगुल्मौ च नाशयेत्।।२३९॥ एलायक, कृष्णवोल, कुमारी, सारतोद्भव यह एलवेके नाम हैं । एलचाकटु, शीतल, दस्तावर, रसशोधक, शूल, आध्मान, कफ, वात, कृमि
और गुल्मरोगको नाश करता है । इसे अंग्रेजीमें Socotrin Aloes कहते हैं ॥ २३९ ॥
प्रसारणी। प्रसारणी राजबाला भद्रपर्णी प्रतानिनी ।। २४० ॥ सरणी सारणी भद्रबला चापि कटंभरा। प्रसारणी गुरुर्वृष्या बलसंधानकृत्सरा ॥२४॥ वीर्योष्णा वातहत्तिक्ता वातरक्तकफापहा । प्रसारणी, राजवला, भद्रपर्णी, प्रतानिनी, सरणी, सारिणी, भद्रवना पौर कटभरा यह प्रसारिणीके नाम हैं। हिन्दीमें खीप या पसरन और चन्द्रवेल कहते हैं । प्रतारणो--भारी, वीर्यवर्द्धक, बनकारक, सन्धानकारक, दस्ताघर, उष्णवीर्य, वातनाशक, तिक्त, वातरक्त और कफको करनेवाली है ॥ २४० ।। २४१ ॥
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